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________________ क्रमांक विषय ८०८ कर्म-वेदन ८०६ कर्म - उदीरणा ८१० उपसंपद-हान ८११ संज्ञा द्वार ८१२ भव द्वार ८१३ आकर्ष द्वार ८१४ स्थिति द्वार ८१५ अन्तर काल द्वार ८१६ समुद्घात द्वार ८१७ लोक स्पर्श द्वार ८१८ भाव द्वारा ८१६ परिमाण द्वार ८२० अल्प. बहुत्व द्वारा ८२१ प्रतिसेवना ८२२ आलोचना के दोष ८२३ आलोचना के योग्य ८२४ आलोचना देने योग्य ८२५ समाचारी के भेद ८२६ प्रायश्चित्त के भेद ८२७ तप के भेद ८२८ अनशन तप ८२६ उनोदरी तप ८३० भिक्षाची तप ८३१ रस परित्याग तप ८३२ काय-क्लेश तप ८३३ प्रतिसंलीनता तप ८३४ प्रायश्चित्त तप Jain Education International (39) पृष्ठ ३४७१ | ८३५ विनय तप ३४७२ ८३६ वैयावृत्य तप ३४७३ ८३७ स्वाध्याय तप ३४७६ ८३८ ध्यान के भेद ३४७७ ८३९ आतं ध्यान ३४७८ ८४० रौद्र ध्यान ३४८१ ८४१ धर्म ध्यान ३४८४ ३४८६ | ८४३ व्युत्सर्ग ३४८७ ३४८८ ३४८९ ३४९० ३४९२ ३४६३ ३४९४ ३४९६ ३४६६ ३४६८ ३५०० ३५०१ ३५०४ ३५०७ ३५०८ "1 क्रमांक विषय ३५०९ ३५१३ ८४२ शुक्ल ध्यान उद्देशक १० ८४७ अभव्य जीवों की उत्पत्ति उद्देशक ८ ८४४ जीवों के उत्पन्न होने का उदाहरण ३५४० ८४५ आत्म- ऋद्धि से उत्पत्ति ३५४२ उद्देशक ११ ८४८ सम्यग्दृष्टि जीवों की उत्पत्ति पृष्ठ उद्देशक ९ ८४६ भवसिद्धिक जीवों की उत्पत्ति ३५४५. ३५१४ ३५२४ ३५२५ उद्देशक १ ८५० जीव ने कर्म का बन्ध किया, करता है, करेगा ? ८५१ नैरयिक के पाप-बन्ध ३५२६ ३५२८ ३५३० ३५३३ ३५३७ For Personal & Private Use Only ३५४६ उद्देशक १२ ८४९ मिथ्यादृष्टि जीवों की उत्पत्ति ३५४७ ( शतक २६ बन्धी शतक) "1 ३५५० ३५५७ www.jainelibrary.org
SR No.004092
Book TitleBhagvati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size11 MB
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