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भगवती सूत्र - श. २५ उ ७ ऊनोदरी तप
तीन या चारों आहार का यावज्जीवन त्याग कर के जो संधारा किया जाता है, उसे 'भक्त - प्रत्याख्यान' अनशन कहते हैं। इसे 'भक्तपरिजा' भी कहते हैं । पादपोपगमन और भक्त - प्रत्याख्यान के 'निर्धारिम' और 'अनिहरिम' - ऐसे दो-दो भेद होते हैं। जिस मुनि का संथारा ग्रामादि में रहते हुआ हो और उसके मृतक शरीर को ग्रामादि से बाहर ले जाना पड़े, उसे 'निहरिम' कहते हैं और ग्रामादि से बाहर किसी पर्वत की गुफादि में जो संथारा किया जाय, उसे 'अनिहरिम' कहते हैं । पादपोपगमन 'अप्रतिकर्म' होता अर्थात् संथारे की अवस्था में दूसरे मुनियों से किसी भी प्रकार की सेवा नहीं कराई जाती है । भक्त - प्रत्याख्यान अनशन 'सप्रतिकर्म' होता है । इस संथारे में दूसरे मुनियों से मेवा कराई जा सकती है ।
ऊनोदरी तप
११० प्रश्न - से किं तं ओमोयरिया ?
११० उत्तर - ओमोयरिया दुविहा पण्णत्ता तं जहा- दव्बोमोयरिया य भावोमोयरिया य ।
भावार्थ - ११० प्रश्न - हे भगवन् ! अवमोदरिका ( ऊनोदरी ) कितने -प्रकार की है ?
११० उत्तर - हे गौतम! अवमोदरिका दो प्रकार की कही है । यथाद्रव्य अवमोदरिका और भाव अवमोदरिका ।
१११ प्रश्न - से किं तं दव्वोमोयरिया ?
१११ उत्तर - दव्वोमोयरिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा - उवगरणदव्योमोयरिया य भत्तपाणदव्वोमोयरिया य ।
भावार्थ - १११ प्रश्न - हे भगवन् ! द्रव्य अवमोदरिका कितने प्रकार की कही है ?
१११ उत्तर - हे गौतम! द्रव्य अवमोदरिका दो प्रकार की कही है।
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