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भगवती मूत्र-श. २५ उ. ७ आलोचना के योग्य
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दंसणसंपण्णे चरित्तसंपण्णे, खते, दंते, अमायी, अपच्छाणुतावी । ... . भावार्थ-९९-दस गुणों से युक्त अनगार आलोचना करने के योग्य होते हैं । यथा-१ जाति सम्पन्न २ कुल सम्पन्न ३ विनय सम्पन्न ४ ज्ञान सम्पन्न ५ दर्शन सम्पन्न ६ चारित्र सम्पन्न ७ क्षान्त (क्षमावाला) ८ दान्त ९ अमायो और १० अपश्चात्तापी।
विवेचन-दस गुणों से युक्त अनगार अपने दोषों की आलोचना करने के योग्य होते हैं । वे गुण इस प्रकार हैं
१ जाति सम्पन्न--मातृ पक्ष को 'जाति' कहते हैं । उत्तम जाति वाला बरा काम नहीं करता । यदि कभी उससे भूल हो जाती है, तो शुद्ध हृदय से आलोचना कर लेता है।
२ कुल सम्पन्न-पितृवंश को 'कुल' कहते हैं । उत्तम कुल में उत्पन्न हुआ व्यक्ति स्वीकार किये हुए प्रायश्चित्त को भली प्रकार से पूरा करता है।
३ विनय सम्पन्न--विनयवान् साधु, बड़ों की बात मान कर शुद्ध हृदय से आलोचना करता है।
४ ज्ञान सम्पन्न--ज्ञानवान् माध 'मोक्ष मार्ग की आराधना के लिये क्या करना चाहिये और क्या नहीं'--इमे भली प्रकार समझ कर आलोचना करता है।
५ दर्शन सम्पन्न--श्रद्धालु । भगवान् के वचनों पर श्रद्धा होने के कारण वह शास्त्रों में बताई हुई, प्रायश्चित्त से होने वाली शद्धि को मानता है और आलोचना करता है।
... ६ चारित्र सम्पन्न--उत्तम चारित्र वाला । अपने चारित्र को शुद्ध रखने के लिये, दोषों की आलोचना करता है। - ७क्षान्त--क्षमावाला । किसी दोष के कारण गुरु से उपालम्भ आदि मिलने पर, वह क्रोध नहीं करता और अपना दोष स्वीकार कर के आलोचना करता है।
८ दान्त--इन्द्रियों को वश में रखने वाला। इन्द्रियों के विषय में अनासक्त व्यक्ति कठोर से कठोर प्रायश्चित्त भी शीघ्र स्वीकार करता है। वह पापों की आलोचना भी शुद्ध हृदय से करता हैं।
९ अमायी--कपट रहित । अपने पाप को छिपाये बिना स्वच्छ हृदय से आलोचना करने वाला सरल व्यक्ति।
१० अपश्चात्तापो--मालोचना करने के बाद पछतावा नहीं करने वाला।
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