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भगवती गूत्र-श. १८ उ. ६ परमाणु और स्कन्ध में वर्णादि
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विवेचन -परमाणु पृद्गल में वर्ण विषयक पांच, गन्ध विषयक दो और रस विषयक पाँच विकल्प हैं और स्पर्श विषयक चार विकल्प हैं । स्निग्ध, रूक्ष, शीत और उष्ण-इन चार स्पर्शों में से कोई भी दो अविरोधो स्पर्श पाये जाते हैं। यथा-शीत और स्निग्ध, शीत और रूक्ष, उष्ण और स्निग्ध या उष्ण और रूक्ष ।
द्विप्रदेशी स्कन्ध में यदि एक वर्ण हो, तो पांच विकल्प और यदि दो वर्ण हो, (प्रत्येक प्रदेश में पृथक्-पृथक् वर्ण हो) तो दस विकल्प होते हैं। इसी प्रकार गन्धादि के विषय में भी समझना चाहिये । द्विप्रदेशी स्कन्ध जब शोत, स्निग्ध आदि दो स्पर्श वाला होता है, तब पूर्वोक्त चार विकल्प पाये जाते हैं । जब तीन स्पर्शवाला होता है, तब भी चार विकल्प पाये जाते हैं क्योंकि जिसमें दो प्रदेश शीत हैं, उसमें एक स्निग्ध और दूसरा रूक्ष होता है । इसी प्रकार दो प्रदेश उप्ण हों, तब दूसरा विकल्प होता है । दोनों प्रदेश स्निग्ध हों, उनमें एक शीत हो और एक उष्ण हो, तब तीसरा विकल्प बनता है । इसी प्रकार दोनों प्रदेश रूक्ष हो, तो चौथा विकल्प बनता है। जब द्विप्रदेशी स्कन्ध चार स्पर्शवाला होता है, तब एक विकल्प बनता है। इसी प्रकार तीन प्रदेशी आदि स्कन्धों में स्वयं घटित कर लेना चाहिये।
सूक्ष्म परिणाम वाले स्कन्ध में पूर्वोक्त शीत, उष्ण, स्निग्ध और रूक्ष-ये चार स्पर्श पाये जाते हैं और बादर अनन्त प्रदेशी स्कन्ध में मृदु, ककंश, गुरु और लघु-ये चार स्पर्श पाये जाते हैं-ऐसा टीकाकार ने लिखा है, किन्तु आगमानुसार यह कथन उचित नहीं है । बीसवें शतक के पांचवें उद्देशक के अनुसार-दादर अनन्त प्रदेशी स्कन्ध में चार से लगा कर आठ तक स्पर्श पाये जाते हैं । चार हो, तो मृदु और कर्कश में से कोई एक, गुरु और लघु में से कोई एक, शीत और उष्ण में से कोई एक और स्निग्ध और रूक्ष में से एक, इस प्रकार चार स्पर्श पाये जाते हैं। पांच स्पर्श हो, तो चार युग्मों में से किसी भी युग्म के दो और शेष तीन युग्मों में से एक-एक, इस प्रकार पाँच स्पर्श पाये जाते हैं। छह स्पर्श हो, तो दो युग्म के दो-दो और दो युग्मों में से एक-एक, यों छह स्पर्श पाये जाते हैं । सात स्पर्श हो, तो तीन युग्मों के दो-दो और एक युग्म में से एक, ये सात स्पर्श पाये जाते हैं । आठ हो, तो चारों युग्मों के दो-दो, स्पर्श पाये जाते हैं।
॥ अठारहवें शतक का छठा उद्देशक सम्पूर्ण ॥
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