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________________ ३१८० भगवती सूत्र-स. २४ उ. २४ वैमानिक देवों का उपपात ५-सो चेव उक्कोसकालट्टिईएसु उववरणो जहणेणं तिपलि. ओवम०, उक्कोसेण वि तिपलिओवम०-एस चेव वत्तव्वया । णवरं ठिई जहणेणं तिण्णि पलिओवमाई, उक्कोसेण वि तिण्णि पलिओ. वमाइं, सेसं तहेव । कालादेसेणं जहण्णेणं छप्पलिओवमाई, उकोसेण वि छप्पलिओवमाइं-एवइयं० ३। भावार्थ-५ यदि वही जीव, उत्कृष्ट काल की स्थिति वाले सौधर्म देव में उत्पन्न हो, तो जघन्य और उत्कृष्ट तीन पल्योपम की स्थिति वाले सौधर्म देव में उत्पन्न होता है, इत्यादि पूर्वोक्त वक्तव्यतानुसार । परन्तु स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट तीन पल्योपम, शेष पूर्ववत् । कालादेश से जघन्य और उत्कृष्ट छह पल्योपम काल तक यावत् गमनागमन करता है ३ । ६-सो चेव अप्पणा जहण्णकालटिईओ जाओ, जहण्णेणं पलिओवमट्टिईएसु, उक्कोसेण वि पलिओवमट्टिईएसु०, एस चेव वत्तव्वया । णवर ओगाहणा जहण्णेणं धणुपहत्तं, उक्कोसेणं दो गाउयाई । ठिई जहण्णेणं पलिओवमं, उक्कोसेण वि पलिओवम, सेसं तहेव । कालादेसेणं जहण्णेणं दो पलिओवमाइं, उकोसेण वि दो पलिओवमाइं-एवइयं०६। __ भावार्थ-६ यदि वह स्वयं जघन्य स्थिति वाला हो और सौधर्म देव में उत्पन्न हो, तो जघन्य और उत्कृष्ट पल्योपम की स्थिति वाले सौधर्म देव में उत्पन्न होता है । उसके लिये भी पूर्वोक्त वक्तव्यतानुसार जानो। किन्तु अव. गाहना जघन्य धनुष-पृथक्त्व और उत्कृष्ट दो गाऊ होती है। स्थिति जघन्य और Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004091
Book TitleBhagvati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages566
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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