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________________ भगवती सूत्र - श. २४ उ २३ ज्योतिपी देवों का उपपात ज्योतिषी में उत्पन्न हो, तो जघन्य और उत्कृष्ट पत्योपम के आठवें भाग की स्थिति वाले ज्योतिषी में उत्पन्न होता है, इत्यादि पूर्वानुसार । कालादेश इससे भिन्न है २ । ३१७२ ५- सो चैव उक्कोसका लट्टिईएसु उववण्णो, एम चैव वत्तव्वया । णवरं ठिई जहणेणं पलिओवमं वाससयसहस्समम्भहियं, उक्कोसेणं तिष्णि पलिओ माई | एवं अणुबंधो वि । कालादेसेणं जहणेणं दो पलिओ माई दोहिं वासस्यसहस्सेहिं अमहियाई, उक्कोसेणं चत्तारि पलिओ माई वासस्यसहस्समम्भहियाई ३ । भावार्थ - ५ - यदि वह संज्ञी पञ्चेन्द्रिय तिर्यंच, उत्कृष्ट स्थिति वाले ज्योतिषी में उत्पन्न हो, तो भी यही वक्तव्यता । स्थिति और अनुबन्ध जघन्य एक लाख वर्ष अधिक पत्योपम और उत्कृष्ट तीन पत्योपम । कालादेश से जघन्य दो लाख वर्ष अधिक दो पत्योपम और उत्कृष्ट एक लाख वर्ष अधिक चार पत्योपम ३ । ६ - सो चेव अप्पणा जहणकालट्ठिईओ जाओ, जहण्णेणं अट्टभागपलिओवमट्टिईएस, उक्कोसेण वि अट्टभागपलिओवमट्टिईएसु उबवज्जिज्जा ४ । भावार्थ - ६ - यदि वह संज्ञी पञ्चेन्द्रिय तिर्यंच, स्वयं जघन्य काल की स्थिति वाला हो और ज्योतिषी में उत्पन्न हो, तो जघन्य और उत्कृष्ट पत्योपम के आठवें भाग की स्थिति वाले ज्योतिषी में उत्पन्न होता है ४ । ७ प्रश्न - ते णं भंते ! जीवा० ? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004091
Book TitleBhagvati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages566
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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