________________
भगवती सूत्र - श. २४ उ. २० पंचेन्द्रिय तिर्यचों की उत्पत्ति
के
है, शेष पूर्ववत् । परिमाण और अवगाहना तीसरे गमक से दो भव तथा कालादेश से जघन्य और उत्कृष्ट पूर्वकोटि पम तक यावत् गमनागमन करता है ९ ।
Jain Education International
३१३७
विवेचन - पृथ्वी कायिक जीव, पृथ्वीकायिक में उत्पन्न हो, तो प्रति-समय असंख्यात
उत्पन्न होते हैं, किन्तु पृथ्वीकायिक यदि पंचेन्द्रिय तिर्यंच में
उत्पन्न हो, तो जघन्य एक, दो
!
। संवेध - नौ गमकों में उत्कृष्ट
. या तीन और उत्कृष्ट संख्यात या असंख्यात उत्पन्न होते आठ भव होते हैं ।
सर्वत्र अकायिक से ले कर चौरिन्द्रिय तक से निकल कर पंचेन्द्रिय तिर्यंच में उत्पन्न होने में परिमाणादि का कथन अपना-अपना करना चाहिये ।
असंज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यंच से निकल कर असंख्यात वर्ष की आयु वाले तिर्यंच जीवों में उत्पन्न हो सकता है ।
जिस प्रकार परिमाणादि का कथन पृथ्वीकायिक जीवों में उत्पन्न होने वाले असंज्ञी के पृथ्वीकायिक उद्देशक में किया, उसी प्रकार पंचेन्द्रिय तिर्यच में उत्पन्न होने वाले असंज्ञी का भी करना चाहिये । इसका उत्कृरका पूर्व पृथक्त्व अधिक पत्योपम का असंख्यातवां भाग कहा है क्योंकि पूर्वकोटि की स्थिति वाला असंज्ञी पूर्वकोटि की स्थिति वाले पंचेन्द्रिय तिर्यंच में सात बार उत्पन्न हुआ और आठवें भव में पल्योपम के असंख्यातवें भाग की स्थिति वाले युगलिकों में उत्पन्न हुआ, इस प्रकार पूर्वोक्त कालादेश बनता है ।
असंख्यात वर्ष को स्थिति वाले पंचेन्द्रिय तिर्यंच संख्यात ही हैं, इसलिये वे उत्कृष्ट रूप से भी संख्यात ही उत्पन्न होते हैं, असंख्यात नही ।
जघन्य स्थिति वाला असंज्ञी, संख्यात वर्ष की स्थिति वाले पंचेन्द्रिय तिर्यंच में ही उत्पन्न होता है । इसलिये चौथे गमक कहा है कि- 'उत्कृष्ट पूर्वकोटि की स्थिति वाले पंचेन्द्रिय तिर्यंच में ही उत्पन्न होता है,' इत्यादि नौ गमक विचारपूर्वक कहना चाहिये । संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यंच से आता हो, तो भी पूर्वोक्त प्रकार से जानना चाहिये, किन्तु वह तीन पल्योपम की स्थिति तक में उत्पन्न हो सकता है । पहले और सातवें गमक में उत्कृष्ट कालादेश सात पूर्वकोटि अधिक तीन पल्योपम होता है। तीसरे और नौवें गमक में उत्कृष्ट संख्यात ही उत्पन्न होते हैं और भव दो ही होते हैं । अतः दो भव का ही कालादेश कहना चाहिये । शेष गमक में युगलिक नहीं होते । अतः समझपूर्वक स्थिति जाननी चाहिये ।
For Personal & Private Use Only
अनुसार । भवादेश अधिक तीन पत्यो
www.jainelibrary.org