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________________ ३१२८ भगवती सूत्र-श. २४ उ. २० पंचेन्द्रिय तिर्यचों की उत्पत्ति जहण्णेणं दो अंतोमुहुत्ता, उक्कोसेणं पलिओवमरस असंखेज्जइभागं पुवकोडि हुत्तमभहियं एवइयं० १ । बिइयगमए एस चेव लद्धी । णवरं कालादेसेणं जहण्णेणं दो अंतोमुहुत्ता, उक्कोसेणं चत्तारि पुत्वकोडिओ चउहि अंतोमुहुत्तेहिं अमहिया-एवइयं० २ । भावार्थ-१५ प्रश्न-हे भगवन् ! वे असंज्ञी पञ्चेन्द्रिय तियंच एक समय में कितने आते हैं ? १५ उत्तर--पृथ्वीकायिक में आने वाले असंज्ञी पञ्चेन्द्रिय तिर्यंच की वक्तव्यता के समान यावत् भवादेश पर्यंत । कालादेश से जघन्य दो अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट पूर्वकोटि पृथक्त्व अधिक पल्योपम का असंख्यातवाँ भाग तक यावत् गमनागमन करता है १ । दूसरे गमक में भी इसी प्रकार, परन्तु कालादेश से जघन्य दो अन्तर्मुहर्त और उत्कृष्ट चार अन्तर्मुहुर्त अधिक चार पूर्वकोटि काल तक यावत् गमनागमन करता है २ । १६-सो चेव उकोसकालढिईएसु उववण्णो जहण्णेणं पलिओ. वमस्स असंखेजहभागट्टिईएसु उक्कोसेण वि पलिओवमस्स असंखेजइ. भागट्टिईएसु उववति । प्रश्न-ते णं भंते ! जीवा० ? उत्तर-एवं जहा रयणप्पभाए उववज्जमाणस्स अप्णिस्स तहेव गिरवसेसं जाव 'कालादेसो' ति । णवरं परिमाणं जहण्णेणं एको वा दो वा तिण्णि वा, उक्कोसेणं संखेजा उववजंति, सेसं तं चेव ३। भावार्थ-१६-यदि वह असंज्ञी पंचेंद्रिय तिथंच उत्कृष्ट काल की स्थिति वाले पञ्चेन्द्रिय तियंच-योनिक में उत्पन्न हो, तो जघन्य और उत्कृष्ट पस्योपम Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004091
Book TitleBhagvati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages566
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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