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________________ ३०९४ भगवती सूत्र-श. २४ उ. १२ पृथ्वीकायिक जीवों की उत्पत्ति ३९ उत्तर-हे गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट बाईस हजार वर्ष की स्थिति वाले पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न होता है । ४० प्रश्न-ते णं भंते ! जीवा० ? - ४० उत्तर-एवं जहेव रयणप्पभाए उववजमाणस्स तहेव तिसु वि गमएसु लदी । णवरं ओगाहणा जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेजइ. भागं, उक्कोलेणं पंचधणुसयाई । ठिई जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं पुव्वकोडी, एवं अणुवंधो । संवेहो णवसु गमएसु जहेव सण्णिपंचिंदियस्म । मझिल्लएसु तिसु गमपसु लद्धी जहेव सण्णिपंचिं. दियस्स, सेसं तं चेव गिरवसेसं, पच्छिल्ला तिण्णि गमगा जहा एयस्स चेव ओहिया गमगा। णवरं ओगाहणा जहण्णेणं पंचधणुसयाई, उक्कोसेणं पंचधणुसयाई । ठिई अणुबंधो जहण्णेणं पुव्वकोडी, उको. सेण वि पुवकोडी, सेसं तहेव । * भावार्थ-४० प्रश्न-हे भगवन् ! वे जीव, एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ? • ४० उत्तर-हे गौतम ! तीन गमकों में रत्नप्रभा में उत्पन्न होने वाले मनष्य के समान । विशेष यह है कि शरीर की अवगाहना जघन्य अंगल के 'असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट पांच सौ धनुष, स्थिति जघन्य अन्तर्मुहर्त और उत्कष्ट पूर्वकोटि । इसी प्रकार अनुबन्ध भी । संवेध-संज्ञी पञ्चेन्द्रिय तिर्यंच के समान नौ गमकों में जानना चाहिये । बीच के तीन गमकों में संज्ञो पञ्चे. न्द्रिय तियंच को लब्धि (परिमाणादि को प्राप्ति) जाननी चाहिये, शेष पूर्ववत् । अन्तिम तीन गमकों का कथन इसके प्रथम के तीन औधिक गमकों के समान । शरीर को अवगाहना जघन्य और उत्कृष्ट पांच सौ धनुष, स्थिति और अनुबन्ध Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004091
Book TitleBhagvati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages566
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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