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भगवती सूत्र - ग. २४ उ १२ पृथ्वीकायिक जीवों की उत्पत्ति
दो अंतोमुहलाई उकोसेणं संखेज्जं कालं - एवइयं ० १ ।
भावार्थ- २१ प्रश्न - हे भगवन् ! वे जीव एक समय में कितने आते हैं ? २१ उत्तर - हे गौतम! जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट संख्यात, या असंख्यात आते हैं । उनका संहनन सेवार्त्त होता है । अवगाहना जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट बारह योजन की होती है । संस्थान हुण्डक, लेश्या तीन, दृष्टि दो-सम्यग्दृष्टि और मिथ्यादृष्टि होते हैं । सम्यग्मिथ्यादृष्टि नहीं होते। उनमें दो ज्ञान या दो अज्ञान अवश्य होते हैं । वे मनयोगी नहीं होते, वचनयोगी और काययोगी होते हैं । उनमें दो उपयोग, चार संज्ञा और चार कषाय होती हैं । जिव्हेन्द्रिय और स्पर्शनेन्द्रिय ये दो इन्द्रियाँ होती है । तीन समुद्घात होती हैं। शेष सभी पृथ्वी कायिकों के समान जानना चाहिये । स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट बारह वर्ष की होती है । इसी प्रकार अनुबन्ध भी होता है । शेष सभी पूर्ववत् । भवादेश से जघन्य दो भव और उत्कृष्ट संख्यात भव तथा कालादेश से जघन्य दो अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट संख्यात काल तक यावत् गमनागमन करता है १ ।
२२- सो चेव जहण्णकालट्टिईएस उववण्णो एस चेव वत्तव्वया सव्वा २ ।
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भावार्थ - २२ प्रश्न - -यदि वह बेइन्द्रिय जघन्य काल की स्थिति वाले पृथ्वी कायिकों में आता हो तो भी पूर्वोक्त सभी वक्तवकता जाननी चाहिये २ ।
२३ - सो चेव उक्कोसका लट्ठिईएस उववण्णो एस चेव बेंदियरस लद्वी । णवरं भवादेसेणं जहणेणं दो भवग्गहणाई, उकोसेणं अट्ट भवग्गणाई | कालादेसेणं जहण्णेणं बावीसं वासमहस्साई अंतो
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