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________________ भगवता मूत्र-स. २४ उ. ३ नागकुमारों का उपपात ३०५७ ५ उत्तर-अवसेसो सो चेव असुरकुमारेसु उववज्जमाणस्स गमगो भाणियब्बो जाव 'भवादेसो' त्ति । कालादेसेणं जहण्णेणं साइरेगा पुवकोडी दसहिं वासमहस्सेहिं अमहिया, उक्कोसेणं देसूणाई पंच पलिओवमाइं-एवइय जाव करेजा १ । ___ भावार्थ-५ प्रश्न-हे भगवन् ! वे जीव एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं, इत्यादि ? ५ उत्तर-असुरकुमारों में उत्पन्न होने वाले असंख्यात वर्ष की आयुष्य वाले तिर्यचों के समान यावत् भवादेश तक समग्र वर्णन जानना चाहिये । काल की अपेक्षा जघन्य सातिरेक पूर्वकोटि सहित दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट देशोन पांच पल्योपम काल तक यावत् गमनागमन करता है १ । ६-सो चेव जहण्णकालटिईएसु उववण्णो, एस चेव वत्तव्वया । णवरं णागकुमारटिइं सवेहं च जाणेजा २।। ___भावार्थ-६-यदि वह जीव जघन्य काल की स्थिति वाले नागकुमारों में उत्पन्न हो, तो इसी प्रकार उत्पन्न होता है । किन्तु यहां नागकुमारों की स्थिति भौर संवेध जानना चाहिये २ । ७-सो चेव उक्कोसकालट्टिईएसु उववण्णो, तस्स वि एस चेव वत्तव्बया । णवरं ठिई जहण्णेणं देसूणाई दो पलिओवमाई, उक्को. सेणं तिण्णि पलिओवमाई, सेसं तं चेव जाव 'भवादेसो ति । कालादेसेणं जहण्णेणं देसूणाई चत्तारि पलिओवमाइं उक्कोसेणं देसूणाई पंच पलिओवमाइं-एवइयं कालं० ३। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004091
Book TitleBhagvati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages566
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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