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भगवती सूत्र-श. २४ उ. २ असुरकुमारों का उपपात
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दसहिं वाससहस्सेहिं अमहिया, उक्कोसेणं छप्पलिओवमाइं-एवड्यं जाव करेजा १ ।
कठिन शब्दार्थ--साइरेगा--सातिरेक-कुछ अधिक । भावार्थ-६ प्रश्न-हे भगवन् ! वे जीव एक समय में कितने उत्पन्न होते है ?
६ उत्तर-हे गौतम ! जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट संख्यात उत्पन्न होते हैं । वे वज्र ऋषभनाराच संहनन वाले होते हैं। उनके शरीर को अवगाहना जघन्य धनुष पृथक्त्व और उत्कृष्ट छह गाऊ (कोस) की होती है। वे समचतुरस्र संस्थान वाले होते हैं। उनमें प्रथम को चार लेश्याएं होती है । वे सम्यग्दृष्टि और सम्यमिथ्यादृष्टि नहीं होते, वे केवल मिथ्यादृष्टि ही होते हैं । वे ज्ञानी नहीं, अज्ञानी होते हैं। उनमें मति अज्ञान और श्रुतअज्ञान-ये दो अज्ञान होते हैं । योग तीनों होते हैं। दो उपयोग, चार संज्ञा, चार कषाय, पांच इन्द्रियां और पहले की तीन संमुद्धात होती हैं। वे समुद्घात करके भी मरते हैं और समुद्घात किये बिना भी मरते हैं । साता और असाता-दोनों प्रकार की वेदना होती है। वे पुरुषवेदी और स्त्रीवेदो होते हैं, नपुंसकवेदी नहीं होते । स्थिति जघन्य सातिरेक पूर्वकोटि और उत्कृष्ट तीन पल्योपम की होती है । अध्यवसाय प्रशस्त भी होते हैं और अप्रशस्त भी। स्थिति के तुल्य अनुबन्ध होता है । काय-संवेध भव को अपेक्षा दो भव और काल की अपेक्षा जघन्य सातिरेक पूर्वकोटि अधिक दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट छह पल्योपम तक यावत् गमनागमन करते हैं। १ ।
___७-सो चेव जहण्णकालदिईएसु उववण्णो-एस चेव वत्तव्वया । णवरं असुरकुमारट्टिई (इं) संवेहं च जाणेजा २ ।
भावार्थ-७-यदि असख्यात वर्ष की आयुष्य वाला संज्ञो पञ्चेन्द्रिय तियंच, जघन्य काल की स्थिति वाले असुरकुमारों में उत्पन्न हो, तो पूर्वोक्त
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