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________________ ३०३८ भगवती सूत्र-श. २४ उ. १ मनुष्यों का नरकोपपात भावार्थ-११०-यदि वह संज्ञो मनुष्य स्वयं उत्कृष्ट स्थिति वाला हो और अधःसप्तम नरक पृथ्वी में उत्पन्न हो, तो उसके तीनों गमकों में पूर्वोक्त वक्तव्यता कहनी चाहिये । शरीर की अवगाहना जघन्य और उत्कृष्ट पांच सौ धनुष होती है । स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट पूर्वकोटि होती है । इसी प्रकार अनुबन्ध भी जानना चाहिये । उपर्युक्त नव ही गमकों में नरयिक की स्थिति और संवेध विचार कर कहना चाहिये। सर्वत्र दो भव जानने चाहिये, यावत् नौवें गमक में काल की अपेक्षा जघन्य और उत्कृष्ट पूर्वकोटि अधिक तेतीस सागरोपम तक यावत् गमनागमन करता है ७-८-९ । "हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार हैकह कर गौतम स्वामी यावत् विचरते हैं। विवेचन-सातवीं नरक पृथ्वी के प्रथम गमक में काय-संवेध उत्कृष्ट पूर्वकोटि अधिक तेतीस सागरोपम कहा गया है, क्योंकि सातवीं नरक से निकला हुआ जीव, मनुष्य रूप से उत्पन्न नहीं होता। इसलिये प्रथम मनुष्य का भव और दूसरा सातवीं नरक का भव, इन दो भवों में काय-संवेध इतने काल का ही होता है । शेष कथन स्पष्ट ही है। ॥ चौबीसवें शतक का प्रथम उद्देशक सम्पूर्ण ॥. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004091
Book TitleBhagvati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages566
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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