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भगवती गूत्र-श. २८ उ. १ मनुष्यों का नरकोपपात
मनुष्य, रत्नप्रभा पृथ्वी के नैयिकों में उत्पन्न हो, तो कितने काल की स्थिति वाले नैरयिकों में उत्पन्न होता है ?
९१ उत्तर-हे गौतम ! वह जघन्य दस हजार वर्ष की स्थिति वाले और उत्कृष्ट एक सागरोपम की स्थिति वाले नरयिकों में उत्पन्न होता है। । ९२ प्रश्न-ते णं भंते ! जीवा एगसमएणं केवइया उववजंति ? .. ९२ उत्तर-गोयमा ! जहण्णेणं एको वा दो वा तिण्णि वा, उक्कोसेणं संखेजा उववजंति । संघयणा छ, सरीरोगाहणा जहण्णेणं अंगुलपुहत्तं, उक्कोसेणं पंचधणुसयाई । एवं सेसं जहा सण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं जाव 'भवादेसो' ति । णवरं चत्तारि णाणा तिणि अण्णाणा भयणाए । छ समुग्धाया केवलिवजा । ठिई अणुबंधो य जहण्णेणं मासपुहुत्तं, उक्कोसेणं पुव्वकोडी, सेसं तं चेव । कालादेसेणं जहण्णेणं दसवाससहस्साई मासपुद्दुत्तमभहियाई, उक्कोसेणं चत्तारि सागरोवमाई चउहिं पुब्बकोडीहिं अमहियाईएवइयं जा करेजा १।
भावार्थ-९२ प्रश्न-हे भगवन् ! वे संख्येय-वर्षायुष्क पर्याप्त संज्ञी मनुष्य एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ?
९२ उत्तर-हे गौतम ! जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट संख्यात उत्पन्न होते हैं । वे छहों संहनन वाले होते हैं । शरीर की अवगाहना जघन्य अंगुलपृथक्त्व (दो अंगुल से नौ अंगुल तक) और उत्कृष्ट पांच सौ धनुष की होती है । शेष सब संज्ञो पंचेंद्रिय तियंच-योनिक जीव के समान यावत् भवादेश तक । विशेषता यह कि मनुष्यों के चार ज्ञान और तीन अज्ञान विकल्प से
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