SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 366
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवती सूत्र-श. २४ उ. १ नरयिकादि का उपपातादि ३८ उत्तर-सेसं तं चेव, ताई चव तिण्णि णाणत्ताइ जाव भावार्थ-३८ प्रश्न-हे भगवन् ! वे जीव एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ? ३८ उत्तर-हे गौतम ! पूर्ववत् । किन्तु आयुष्य, अध्यवसाय और अनुबन्ध के विषय में पूर्ववत् अन्तर है । यावत् ३९ प्रश्न-से णं भंते ! जहण्णकालटिईयपज्जत्त० जाव जोणिए जहण्णकालट्टिईयरयणप्पभा० पुणरवि जाव ? ३९ उत्तर-गोयमा ! भवादेसेणं दो भवग्गहणाई. कालादेसेणं जहण्णेणं दसवाससहस्साइं अंतोमुहुत्तमभहियाई, उक्कोसेण वि दसवाससहस्साइं अंतोमुहुत्तमभहियाई, एवइयं कालं सेवेजा जाव करेजा ५। भावार्थ-३९ प्रश्न-हे भगवन् ! वह जघन्य स्थिति वाला पर्याप्त असंज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यंच-योनिक, रत्नप्रभा में जघन्य स्थिति वाले नैरयिकों में उत्पन्न हो और पुनः असंज्ञी पंचेन्द्रिय तियंच हो, इस प्रकार कितने काल तक यावत् गमनागमन करता है ? ३९ उत्तर-हे गौतम ! भवादेश से दो भव और कालादेश से जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर्मुहुर्त अधिक दस हजार वर्ष सेवन और इतने काल तक गमनागमन करता है ५ । ___४० प्रश्न-जहण्णकालट्टिईयपजत्ता० जाव तिरिक्खजोणिए ण भंते ! जे भविए उक्कोसकालट्टिईएसु रयणप्पभापुढविणेरइएसु उववजित्तए से णं भंते ! केवइयकालठिईएसु उववजेजा ? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004091
Book TitleBhagvati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages566
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy