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भगवती सूत्र-श. २४ 3. १ नैरयिकादि का उपपातादि
यत्ति कालओ केवचिरं होइ ? ___ २६ उत्तर-गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहत्त, उक्कोसेणं पुय. कोडी १९ ।
भावार्थ-२६ प्रश्न-हे भगवन् ! वे जीव पर्याप्त असंज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यचयोनिक रूप में कितने काल तक रहते हैं ?
२६ उत्तर-हे गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट पूर्वकोटि ।
२७ प्रश्न-से णं भंते ! पजत्ताअसण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणिए रयणप्पभाए पुढवीए णेरइए, पुणरवि पजत्ताअसण्णिपंचिंदियतिरिषखजोणिएत्ति केवइयं कालं सेवेजा-केवश्य कालं गइरागई करेजा ?
२७ उत्तर-गोयमा ! भवादेनेणं दो भवग्गहणाई, कालादेसेणं जहंग्णेणं दस वाससहस्साई अंतोमुहुत्तमभहियाई, उकोसेणं पलिओवमस्स असंखेजइभागं पुवकोडिममहियं, एवइयं कालं सेवेजा. एवइयं कालं गहरागई करेजा २० ।
भावार्थ-२७ प्रश्न-हे भगवन् ! वे पर्याप्त असंज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यच-योनिक जीव, रत्नप्रभा पृथ्वी में ने रयिकपने उत्पन्न होते हैं और फिर पर्याप्त असंज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यंच-योनिक हों, इस प्रकार कितने काल तक सेवन करते हैं और कितने काल तक गमनागमन करते हैं ?
२७ उत्तर-हे गौतम ! भवादेश की अपेक्षा दो भव और कालादेश की अपेक्षा जघन्य अन्तर्मुहूर्त अधिक दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट पूर्वकोटि अधिक पल्योपम का असंख्यातवां भाग, इतने काल तक सेक्न करता है और इतने काल तक गमनागमन करता है ।२०।
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