SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 353
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ . २९८२ भगवती सूत्र-श. २४ उ. १ नैरयिकादि का उपपातादि के असंख्यातवें भाग की स्थिति वाले नैरयिकों में उत्पन्न होता है। विवेचन-रत्नप्रभा के नरयिकों की जघन्य स्थिति दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट एक .सागरोपम की है । किन्तु पर्याप्त असंशी पंचेन्द्रिय तिथंच जो नरक में जाता है, वह पत्योपम के असंख्यातवें भाग की स्थिति वाले नरयिकों तक हो उत्पन्न होता है, इससे आगे नहीं। ८ प्रश्न-ते णं भंते ! जीवा एगसमएणं केवइया उववज्जति ? ८ उत्तर- गोयमा ! जहण्णेणं एक्को वा दो वा तिण्णि वा, उक्कोसेणं संखेजा वा असंखेजा वा उववजंति २ । भावार्थ-८ प्रश्न-हे भगवन् ! वे असंज्ञी तिथंच रत्नप्रभा पृथ्वी में एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ? ८ उत्तर-हे गौतम ! वे जघन्य एक, दो, तीन और उत्कृष्ट संख्यात या असंख्यात. उत्पन्न होते हैं। ९ प्रश्न-तेसि णं भंते ! जीवाणं सरीरगा कि संघयणी पण्णता ? ९ उत्तर-गोयमा ! छेवटुसंघयणी पण्णत्ता ३ । भावार्थ-९ प्रश्न-हे भगवन् ! उनके (असन्नी तियंच-पञ्चेन्द्रिय के) शरीर किस संहनन वाले होते हैं ? ९ उत्तर-हे गौतम ! सेवार्त संहनन वाले होते हैं। १० प्रश्न-तेसि णं भंते ! जीवाणं केमहालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता ? ___१० उत्तर-गोयमा ! जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेजहभागं, उकोसेणं जोयणसहस्सं ४। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004091
Book TitleBhagvati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages566
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy