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भगवती सूत्र - श. २३ वर्ग ४ उ. १-१० पाठा आदि के
मूल
१ उत्तर - एवं एत्थ वि मूलादीया दस उद्देसगा आलुयवग्ग सरिसा,
वरं ओगाहणा जहा वल्लीणं, सेसं तं चैव ।
'सेवं भंते ! सेवं भंते' ! ति
॥ तेवीस मे स चत्थो वग्गो - समत्तो ॥
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की उत्पत्ति
भावार्थ - १ प्रश्न - हे भगवन् ! पाठा, मृगवालुंकी, मधुर रसा, राजवल्ली, पद्मा, मोढरी, दंती और चण्डी, इन सब वनस्पति के मूलपने जो जीव उत्पन्न होते हैं, वे कहाँ से आते हैं ?
१ उत्तर-हे गौतम ! आलू-वर्ग के समान यहां भी मूलादि दस उद्देशक जानना चाहिये । अवगाहना वल्ली के समान । शेष सब पूर्ववत् ।
'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है'कह कर गौतम स्वामी यावत् विचरते हैं ।
॥ तेईसवें शतक का चौथा वर्ग सम्पूर्ण ॥
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