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भगवती सूत्र-श. २३ वर्ग २ उ. १-१० लोही आदि के मूल की उत्पत्ति २९७१
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मधु, पयलई, मधुश्रृंगी, निरुहा, सर्पसुगन्धा, छिनरुहा और बीजरुहा, इन वृक्षों के मलपने जो जीव उत्पन्न होते हैं, वे जीव कहाँ से आते हैं ?
१ उत्तर-हे गौतम ! यहां वंशवर्ग के समान मूलादि दस उद्देशक कहने चाहिये । विशेष यह है कि उनका परिमाण एक समय में जघन्य एक, दो, तीन और उत्कृल संख्यात, असंख्यात और अनन्त जीव आ कर उत्पन्न होते हैं। हे गौतम ! यदि एक-एक समय में, एक-एक जीव का अपहार किया जाय, तो अनन्त उत्सपिणी और अवसपिणी काल तक किया जाने पर भी उनका अपहार नहीं हो सकता (ऐसा किसी ने किया नहीं और कर भी नहीं सकता) क्योंकि उनकी स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर्मुहुर्त की होती है। शेष सब पूर्ववत् ।
___ 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है'कह कर गोतम स्वामी यावत् विचरते हैं।
॥ तेईसवें शतक का पहला वर्ग सम्पूर्ण ॥
शतक २३ वर्ग २ उद्देशक ५-१०
लोही आदि के मूल की उत्पत्ति
१ प्रश्न-अह भंते ! लोही-णीहू-थीहू-थिवगा-अस्सकण्णी-सीहकण्णी-सीउंढी-मुसंढीणं, एएसि णं जीवा मूल० ?
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