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भगवती मूत्र-श. २० उ. १० चौरासी-समजित
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२५ प्रश्न-एएसि णं भंते ! मिद्धाणं चुलमीइसमजियाणं, णोचुलसीइसमजियाणं, चुलसीईए य णोचुलसीईए य समजियाणं कयरे कयरे जाव विसेसाहिया वा ? । __२५ उत्तर-गोयमा ! सव्वत्थोवा सिद्धा चुलसीईए य णोचुलसीईए य समजिया, चुलसीईसमजिया अणंतगुणा, णोचुलसीइ. समजिया अणंतगुणा। ॐ 'सेवं भंते ! सेवं भंते' ! त्ति जाव विहरइ ॐ ॥ वीसइमे सए दसमो उद्देसो समत्तो ॥
॥ वीसइमं सयं समत्तं ॥ भावार्थ-२३ प्रश्न-हे भगवन् ! सिद्ध चौरासी-समजित हैं, इत्यादि प्रश्न ।
२३ उत्तर-हे गौतम ! सिद्ध चौरासी-समजित भी हैं, नो-चौरासी. सजित भी हैं, चौरासी-समजित और नो-चौरासी-समजित भी हैं, किन्तु अनेक चौरासी-समजित नहीं हैं तथा अनेक चौरासी-समजित और नो-चौरासीसमजित भी नहीं हैं।
प्रश्न-हे भगवन् ! उपरोक्त कथन का कारण क्या है ?
उत्तर-हे गौतम ! जो सिद्ध एक साथ, एक समय में चौरासी संख्या में प्रवेश करते हैं, वे चौरासी-समजित हैं। जो सिद्ध जघन्य एक, दो, तीन और उत्कृष्ट तिरयासी संख्या में प्रवेश करते हैं, वे नो चौरासी-समजित हैं । जो सिद्ध एक समय में, एक साथ चौरासी और जघन्य एक, दो तीन और उत्कृष्ट तिरयासी तक प्रवेश करते हैं, वे चौरासी-समजित और नो-चौरासी
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