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________________ भगवती सूत्र-श. १८ उ. १ चरम अचरम २६५९ पुहुत्तेणं चरिमा वि अचरिमा वि । अणाहारओ जीवो सिद्धो य एगतेण वि पुहुत्तेण वि णो चरिमे, अचरिमे । सेसट्टाणेसु एगत्तपुहुत्तेणं जहा आहारओ ।२। कठिन शब्दार्थ-चरिमे-चरम-(अन्तिम) सिय-स्यात् (कदाचित्) । भावार्थ-२० प्रश्न-हे भगवन् ! जीव, जीवत्व (जीवभाव) की अपेक्षा चरम है या अचरम ? २० उत्तर-हे गौतम ! चरम नहीं, अचरम है। २१ प्रश्न-हे भगवन् ! नरयिक, नैरयिकभाव की अपेक्षा चरम है या अचरम ? २१ उत्तर-हे गौतम ! कदाचित् चरम है और कदाचित् अचरम है। इस प्रकार वैमानिक तक जानना चाहिए । सिद्ध का कथन जीव के समान है। २२ प्रश्न-जीवों के विषय में चरम, अचरम सम्बन्धी प्रश्न ? . २२ उत्तर-हे गौतम ! जीव चरम नहीं, अचरम हैं। नैरयिक जीव, नैरयिकभाव से चरम भी हैं और अचरम भी। इसी प्रकार यावत् वैमानिक तक समझना चाहिए । सिद्धों का कथन जीवों के समान है। २३-आहारक सर्वत्र एक वचन से कदाचित् चरम और कदाचित् अचरम होता है । बहुवचन से आहारक चरम भी होते हैं और अचरम भी। अनाहारक जीव और सिद्ध एकवचन और बहुवचन से चरम नहीं होते, अचरम होते हैं। शेष नैरपिकादि स्थानों में अनाहारक, एकवचन और बहुवचन से अनाहारक जीव के समान (कदाचित् चरम और कदाचित् अचरम) है। २४-भवसिद्धीओ जीवपए एगत्तपुहुत्तेणं चरिमे, णो अचरिमे, सेसट्ठाणेसु जहा आहारओ। अभवसिद्धीओ सव्वस्थ एगत्तपत्तेणं णो Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004091
Book TitleBhagvati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages566
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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