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________________ २९२२ भगवती सूत्र-श. २० उ. १० कति-अकति संचित प्रकार यावत् वैमानिक पर्यन्त । इसी प्रकार उद्वर्तना दण्डक भी जानना चाहिये। ८ प्रश्न-हे भगवन् ! नरयिक जीव आत्मप्रयोग से उत्पन्न होते हैं, या परप्रयोग से? ८ उत्तर-हे गौतम ! वे आत्मप्रयोग से उत्पन्न होते हैं, परप्रयोग से नहीं । इस प्रकार यावत् वैमानिक पर्यन्त । इसी प्रकार उद्वर्तना दण्डक भी जानना चाहिये। विवेचन-जिन जीवों का आयुष्य, व्यवहार से अप्राप्त काल (असमय) में ही समाप्त हो जाता है, वे जीव 'सोपक्रम आयुष्य' वाले कहलाते हैं और इसके अतिरिक्त दूसरे जीव 'निरुपक्रम आयुष्य वाले' कहलाते हैं । देव, नैरयिक और असंख्यात वर्ष की आयुष्य वाले तिर्यंच और मनुष्य, उत्तम पुरुष तथा चरम शरीरा जीव, ये सब निरुपक्रम आयुष्य वाले होते हैं। शेष सभी संसारी जीव, सोपक्रम और निरुपक्रम-दोनों प्रकार के आयुष्य वाले होते हैं। ___ व्यवहार दृष्टि से आयुष्य को स्वयमेव घटा देना-'आत्मोपक्रम' कहलाता है । श्रेणिक नरेशवत् और अन्य के द्वारा आयुष्य का घटाया जाना अर्थात् परकृत मरण से मरना 'परोपक्रम' कहलाता है । यथा-कोणिकं । उपक्रम के अभाव से मरना-'निरुपक्रम' कहलाता है । यथा-कालशौकरिक ।। जीव आत्मऋद्धि अर्थात् स्व-सामर्थ्य से मरते हैं, ईश्वरादि के प्रभाव से नहीं । इसी प्रकार आत्मकृत कर्मों और आत्मप्रयोग से मरते हैं, परकृत कर्म और परप्रयोग से नहीं मरते। कति-अकति संचित - ९ प्रश्न-णेरइया णं भंते ! किं कइसंचिया, अकइसंचिया, अवत्तव्वगसंचिया ? ९ उत्तर-गोयमा ! णेरड्या कइसंचिया वि, अकइसंचिया वि, अवतव्वगसंचिया वि। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004091
Book TitleBhagvati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages566
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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