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________________ भगवती सूत्र-श. २० उ. ९ चारण-मुनि की तीव्र गति २९१५ ७ उत्तर - गोयमा ! अयणं जंबुद्दीवे दोवे० एवं जहेव विज्जाचारणस्स, णवरं तिसत्तखुत्तो अणुपरियट्टित्ता णं हव्वमागच्छेजा, जंवाचारणस्स णं गोयमा ! तहा सीहा गई, तहा सीहे गइविसए पण्णत्ते । भावार्थ - ६ प्रश्न - हे भगवन् ! 'जंघाचारण' क्यों कहते हैं ? ६ उत्तर - हे गौतम ! निरन्तर तेले-तेले की तपस्यापूर्वक आत्मा को भावित करते हुए मुनि को 'जंघाचारण' नामक लब्धि उत्पन्न होती है । इस कारण उसे 'जंघाचारण' कहते हैं । ७ प्रश्न - हे भगवन् ! जंघाचारण की शीघ्र गति कैसी होती है और उसकी शीघ्र गति का विषय कितना होता है ? ७ उत्तर - हे गौतम! यह जम्बूद्वीप यावत् जिसकी परिधि तीन लाख सोलह हजार दो सौ सत्ताईस योजन से कुछ विशेषाधिक है, इत्यादि वर्णन विद्याचारणवत् । विशेष यह है कि कोई महद्धक देव, तीन चुटकी बजावे, उतने में इस जम्बूद्वीप की इक्कीस बार परिक्रमा कर ले। हे गौतम! जंघाचारण की इतनी शीघ्र गति और शीघ्र गति का विषय है । ८ प्रश्न - जंघाचारणस्स णं भंते! तिरियं केवड़ए गड़विसए पण्णत्ते ? ८ उत्तर - गोयमा ! से णं इओ एगेणं उप्पारणं रुयगवरे दीवे समोसरणं करेड़, रुयग० २ करेत्ता तहिं चेहयाई वंदर, तहिं० २ वंदित्ता त पडिणियत्तमाणे बिइएणं उप्पारणं णंदीसरवरदीवे समोसरणं करेs, नंदी० २ करेत्ता तहिं चेहयाई वंदन, तहिं० २ वंदित्ता Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004091
Book TitleBhagvati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages566
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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