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________________ भगवती सूत्र-ग. २० उ. ५ वारण-मुनि की तीव्र-गति २६१३ चारणस्स णं गोयमा ! तिरियं पवइए गइविमए पण्णत्ते । ५ प्रश्न-विजाचारणस्स णं भंते ! उड्ढे केवइए गइविसए पण्णत्ते ? __ ५ उत्तर-गोयमा ! से णं इओ एगेणं उप्पारणं गंदणवणे समो. सरणं करेइ, गंद० २ करेत्ता तहिं चेहयाई वंदइ, नहिं० २ वंदित्ता विइएणं उप्पारणं पंडगवणे समोसरणं करेइ, पंडग० २ करेत्ता तहिं चेइयाइं वंदइ, तहिं०२ वंदित्ता तओ पडिणियत्तइ, तओ पडिणियतित्ता इहमागच्छइ, इहमागच्छित्ता इहं चेइयाई वंदइ । विजाचारणस्स णं गोयमा ! उड्ढं एवइए गइविसर पण्णत्ते । से णं तस्स ठाणस्स अणालोइय-पडिक्कंते कालं करेइ, णस्थि तस्स आराहणा, से णं तस्स ठाणस्स आलोइयपडिक्कंते कालं करेइ अस्थि तस्स आराहणा । कठिन शब्दार्थ-सीहा-शीघ्र, उप्पाएणं-उत्पात-उड़ान । भावार्थ-३ प्रश्न-हे भगवन् ! विद्याचारण की शीघ्र-गति कैसी होती है और उनका गति विषय कितना शीघ्र होता है ? ३ उत्तर-हे गौतम ! यह जम्बूद्वीप यावत् जिसकी परिधि तीन लाख सोलह हजार दो सौ सत्ताईस योजन से कुछ विशेषाधिक है, उसके चारों ओर * कोई महद्धिक यावत् महासुख वाला देव यावत् 'यह चक्कर लगाता हूँ'-ऐसा कह कर तीन चुटकी बजावे, उतने समय में, तीन बार चक्कर लगा कर शीघ्र आवे, ऐसी शीघ्र गति विद्याचारण को है और इस प्रकार का शीघ्र-गति का विषय कहा है। ४ प्रश्न-हे भगवन् ! विद्याचारण की तिझै-गति को मालितना कहा गया है ? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004091
Book TitleBhagvati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages566
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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