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________________ कहे हैं ? भगवती सूत्र - श. २० उ. जिनान्तरों में श्रुत व्यवच्छेद १२- वासुपूज्य, १३ - विनल, १४ - अनन्त, १५ - धर्म, १६- शान्ति, १७- कुन्थु, १८- अर, १९ - मल्लि, २० - मुनिसुव्रत, २१ - नमि, २२- नेमि, २३ - पार्व २४ - वर्धमान । ७ प्रश्न - हे भगवन् ! इन चौवीस तीर्थंकरों के कितने अन्तर ( व्यवधान) ७ उत्तर - हे गौतम! तेईस अन्तर कहे हैं ? Jain Education International जिनान्तरों में व्यवच्छेद ८ प्रश्न - एएम णं भंते ! तेवीसाए जिणंतरेसु कस्स कहिं कालियसुयस्स वोच्छेए पण्णत्ते ? ८ उत्तर - गोयमा ! एएस णं तेवीसाए जिणंतरेसु पुरिमपच्छिमएस असु २ जिणंतरेसु एत्थ णं कालियसुयस्स अवोच्छेए पण्णत्ते, मज्झिमएस सत्तसु जिणंतरेसु एत्थ णं कालियसुयस्स वोच्छेए पण्णत्ते, सव्वत्थ विणं वोच्छिष्णे दिट्टिवाए । २९०५ श्रुत भावार्थ-८ प्रश्न - हे भगवन् ! इन तेईस जिनान्तरों में किस जिन के अन्तर में कालिकत का व्यवच्छेद कहा है ? ८ उत्तर - हे गौतम ! इन तेईस जिनान्तरों में पहले आठ और पिछले आठ जिनान्तरों में कालिकत का अव्यववछेद कहा है और मध्य के सात जिनान्तरों में कालिकश्रुत का व्यवच्छेद हुआ है । दृष्टिवाद का व्यवच्छेद तो सभी जिनान्तरों में हुआ है । विवेचन- जिन सूत्रों का अध्ययनादि काल में ही अर्थात् दिन के और रात्रि के प्रथम प्रहर और अन्तिम प्रहर में किया जा सकता है, वे सूत्र 'कालिक' कहलाते हैं, जैसे For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004091
Book TitleBhagvati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages566
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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