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________________ २६५६ भगवती सूत्र-श. १८ उ. १ योग उपयोगादि प्रथम है या अप्रथम ? संयत द्वार में मात्र जीव और मनुष्य-ये दो पद होते हैं । इनमें संयतपन सम्यगदृष्टि के समान प्रथम और अप्रथम होता है । अकषायी जीव, यथाख्यात चारित्र की प्रथम प्राप्ति के समय 'प्रथम' होते हैं और पुनः प्राप्ति के समय अप्रथम होते हैं । इसी प्रकार मनुष्य के विषय में भी जानना चाहिये । अकषायी सिद्ध प्रथम होते हैं, क्योंकि सिद्ध, सिद्धत्व सहित अकषाय भाव की अपेक्षा प्रथम हैं। ज्ञान द्वार में ज्ञानी, सम्यग्दृष्टि के समान प्रथम और अप्रथम होता हैं। इनमें केवलज्ञानी, केवलज्ञान की अपेक्षा प्रथम हैं और अकेवली, केवलज्ञान के अतिरिक्त गेप ज्ञानों की प्रथम प्राप्ति में 'प्रथम' होते हैं और पुनः प्राप्ति में 'अप्रथम' होते हैं। योग उपयोगादि प्रथम है या अप्रथम ? १५-सजोगी, मणजोगी, वयजोगी, कायजोगी एगत्तपत्तेणं जहा आहारए, णवरं जस्स जो जोगो अस्थि । अजोगी जीव-मणुस्ससिद्धा एगत्तपुहुत्तेणं पढमा, णो अपढमा ।१०। १६-सागारोवउत्ता अणागारोवउत्ता एगत्तपुहत्तेणं जहा अणाहारए ।११। . १७-सवेदगो जाव णपुंसगवेदगो एगत्तपुहुत्तेणं जहा आहारए, णवरं जस्स जो वेदो अस्थि । अवेदओ एगत्तपुहत्तेणं तिसु वि पदेसु जहा अकसायी ॥१२॥ १८-ससरीरी जहा आहारए, एवं जाव कम्मगसरीरी, जस्स जं अस्थि सरीरं, णवरं आहारगसरीरी एगत्तपुहुत्तेणं जहा सम्मदिट्ठी । असरीरी जीवो सिद्धो एगत्तपुहुत्तेणं पढमो णो अपढमो ॥१३॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004091
Book TitleBhagvati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages566
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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