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भगवती मूत्र-ग. २० उ. ', परमाणु और स्कन्ध के वर्णादि
११ उत्तर-हे गौतम ! अठारहवें शतक के छठे उद्देशक के अनुसार यावत् 'कदाचित् आठ स्पर्श वाला भी कहा गया है'-तक जानना चाहिये । अनन्त-प्रदेशी बादर परिणाम वाले स्कन्ध के वर्ण, गन्ध और रस के भंग, दस प्रदेशी स्कन्ध के समान कहने चाहिये । यदि वह चार स्पर्श वाला होता है, तो १-कदाचित् सर्व कर्कश, सर्व गुरु, सर्व शीत और सर्व स्निग्ध होता है । २-कदाचित् सर्व कर्कश, सर्व गुरु, सर्व शीत और सर्व रूक्ष होता है । ३-कदाचित् सर्व कर्कश, सर्व गुरु, सर्व उष्ण और सर्व स्निग्ध होता है। ४-कदाचित् सर्व कर्कश, सर्व गुरु, सर्व उष्ण और सर्व रूक्ष होता है। ५-कदाचित् सर्व कर्कश, सर्व लघु, सर्व शीत और सर्व स्निग्ध होता है । ६-कदाचित् सर्व कर्कश, सर्व लघु, सर्व शीत और सर्व रूक्ष होता है । ७-कदाचित् सर्व कर्कश, सर्व लघु, सर्व उष्ण और सर्व स्निग्ध होता है । ८-कदाचित् सर्व कर्कश, सर्व लघु, सर्व उष्ण और सर्व रूक्ष होता है । ९-कदाचित् सर्व मदु (कोमल), सर्व गुरु, सर्व शीत और सर्व स्निग्ध होता है । १०-कदाचित् सर्व मदु, सर्व गुरु, सर्व शीत और सर्व रूक्ष होता है । ११-कदाचित् सर्व मृदु, सर्व गुरु, सर्व उष्ण और सर्व स्निग्ध होता है । १२-कदाचित् सर्व मृदु, सर्व गुरु, सर्व उष्ण और सर्व रूक्ष होता है। १३-कदाचित् सर्व मृदु, सर्व लघु, सर्व शीत और सर्व स्निग्ध होता है। १४-कदाचित् सर्व मृदु, सर्व लघु, सर्व शीत और सर्व रूक्ष होता है। १५-कदाचित् सर्व मदु, सर्व लघु, सर्व उष्ण और सर्व स्निग्ध होता है। १६-कदाचित सर्व मृदु, सर्व लघु, सर्व उष्ण और सर्व रूक्ष होता है।
जड़ पंचफासे सव्वे कक्खडे सव्वे गरुए सव्वे सीए देमे णिदधे देसे लुक्खे १, सव्वे काखडे सब्वे गरुए सव्वे सीए देसे णिधे देसा लुक्खा २, सव्वे कम्खडे सव्वे गरुए सव्वे सीए देसा णिद्धा देसे लुक्खे ३, सब्वे कक्खडे सब्वे गरुए सव्वे सीए देसा णिद्धा देसा लुक्खा ४, सब्वे कवडे सव्वे गरुए सव्वे उसिणे देसे णिधे देसे
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