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________________ भगवती सूत्र - २० उ. ३ आत्म-परिणत पाप धर्म बुद्धि आदि २८४३ आत्मा के सिवाय अन्यत्र परिणमन नहीं करते । २ प्रश्न - हे भगवन् ! गर्भ में उत्पन्न होता हुआ जीव, कितने वर्ण, गंध, रस, स्पर्श वाले परिणामों से युक्त होता है ? २ उत्तर - हे गौतम ! बारहवें शतक के पाँचवें उद्देशक के अनुसार यावत् 'कर्म से जगत् है, कर्म के सिवाय जीव में विविध परिणाम नहीं होता'तक जानना चाहिये । 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है। हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है'कह कर गौतम स्वामी यावत् विचरते हैं । विवेचन प्राणातिपातादि उपर्युक्त सभी धर्म जीव के हैं । धर्मी को छोड़ कर धर्म नहीं रहते । धर्म और धर्मी कथंचित् एक रूप हो कर रहते हैं । इसलिये उपर्युक्त सर्व-धर्म आत्मा में होते हैं, अन्यत्र नहीं होते । गर्भ में उत्पन्न होता हुआ जीव तैजस् कार्मण गरीरं सहित रहता हुआ औदारिक शरीर ग्रहण करता है और शरीर तो पुद्गलमय है, वर्णादि युक्त होता है और जीव वर्णादि से रहित होता है। इसलिये वणं, गन्ध, रस इत्यादि विषयक प्रश्न किया गया है। जिसका उत्तर है कि गर्भ में उत्पन्न होता हुआ जीव, पांच वर्ण, पांच रस, दो गन्ध और आठ स्पर्श वाले परिणामों से परिणमता है, इत्यादि वर्णन बारहवें शतक के पाँचवें उद्देशक से जान लेना चाहिये । Jain Education International ॥ बीसवें शतक का तीसरा उद्देशक सम्पूर्ण || For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004091
Book TitleBhagvati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages566
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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