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- भगवती मुत्र-. २० उ. २ पंचास्तिकाय के अभिवचन-
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इ वा, जीवत्थिकाये इ वा, पाणे इ वा. भूए इ वा, सत्ते इ वा, विष्णू इ वा, वेया इ वा, चेया इ वा, जेया इ वा, आया इ वा, रंगणा इ वा, हिंडुए इ वा, पोग्गले इ वा, माणवे इ वा, कत्ता इ वा, विकत्ता इ वा, जए इ वा, जंतु ड़ वा, जोणी ड़ वा, सयंभू इ वा, ससरीरी इ वा, णायए इ वा, अंतरप्पा इ वा, जे यावण्णे तहप्पगारा सब्वे ते जीवत्थिकायस्स अभिवयणा । ___ भावार्थ-७ प्रश्न-हे. भगवन् ! जीवास्तिकाय के कितने अभिवचन है ?
७ उत्तर-हे गौतम ! जीवास्तिकाय के अनेक अभिवचन कहे गये हैं। यथा-जीव, जीवास्तिकाय, प्राण, भूत, सत्त्व, विज्ञ, चेता (पुदगलों का संचय करने वाला), जेता (कर्म रूप शत्रु को जीतने वाला) आत्मा, रंगण (रागयुक्त) हिण्डुक (गमन करने वाला) पुद्गल, मानव (नया नहीं, प्राचीन-अनादि) कर्ता, विकर्ती, (विविध कर्मों का करने वाला) जगत् (गमनशील) जन्तु, योनि, (उत्पादक) स्वयंभूति, शरीरी, नायक, अन्तरात्मा, जीवास्तिकाय के ये और इसके समान अन्य अनेक अभिवचन हैं।
८ प्रश्न-पोग्गलथिकायस्स णं भंते ! पुच्छा।
८ उत्तर-गोयमा ! अणेगा अभिवयणा पण्णत्ता, तं जहापोग्गले इ वा, पोग्गलत्थिकाये इ वा, परमाणुपोग्गले इ वा, दुपए सिए इ वा, तिपएसिए इ वा जाव असंखेजपएसिए इ वा, अणंतपएसिए इ वा, जे यावण्णे तहप्पगारा सब्चे ते पोग्गलत्थिकायस्स अभिवयणा।
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