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भगवती सूत्र - श. २० उ. २ लोकाकाश- अलोकाकाश
विवेचन -- असंयत जीव प्राणातिपात यावत् मिथ्यादर्शनशल्य वाले होते हैं और संयत जीव प्राणातिपातादि से रहित होते हैं ।
'हम वध्य हैं और ये वधिक हैं अर्थात् हम मारे जाते हैं और ये हमें मारने वाले हैं' - ऐसा ज्ञान, संज्ञी जीवों को होता है, असंज्ञी जीवों को नहीं ।
॥ बीसवें शतक का पहला उद्देशक सम्पूर्ण ॥
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शतक २० उद्देशक २
लोकाकाश- अलोकाकाश
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१ प्रश्न - कविहे णं भंते ! आगासे पण्णत्ते ?
१ उत्तर - गोयमा ! दुविहे आगासे पण्णत्ते, तं जहा - लोया... गाय अलोयागासे य ।
२ प्रश्न - लोयागासे णं भंते! किं जीवा, जीवदेसा ?
२ उत्तर - एवं जहा बियसए अस्थिउद्देसे तह चैव इह वि भाणियव्वं, rai अभिलावो जाव 'धम्मत्थिकाए णं भंते ! केमहालए पण्णत्ते ? गोयमा ! लोए लोयमेत्ते लोयप्पमाणे लोयफुडे लोयं चेव ओगाहित्ता
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