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शतक १६ उद्देशक १०
देवों का आहार
१ प्रश्न-वाणमंतरा णं भंते ! सव्वे समाहारा० एवं जहा सोलसमसए दीवकुमारुद्देसओ जाव 'अप्पिड्ढिय' ति। ..
8 'सेवं भंते ! सेवं भंते' ! ति ॐ ॥ एगूणवीसइमे सए दसमो उद्देसो समत्तो ॥
॥ एगूणवीसइमं सयं समत्तं ॥ भावार्थ-१ प्रश्न-हे भगवन् ! सभी वाणव्यन्तर समान आहार वाले होते हैं इत्यादि प्रश्न।
१ उत्तर-हे गौतम ! सोलहवें शतक के ग्यारहवें द्वीपकुमारोद्देशक के अनुसार यावत् 'अल्पद्धिक' पर्यन्त जानना चाहिये।
हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार हैकह कर गौतम स्वामी यावत् विचरते हैं।
विवेचन-कृष्णलेश्या वाले वाणव्यन्तरों की अपेक्षा नीललेश्या वाले वाणव्यन्तर महद्धिक हैं । यावत् तेजोलेश्या वाले वाणव्यन्तर सब से महद्धिक हैं, इत्यादि वर्णन सोलहवें शतक के ग्यारहवें उद्देशक में, द्वीपकुमारों का किया जा चुका है, तदनुसार यहाँ भी जानना चाहिये।
।। उन्नीसवें शतक का दसवां उद्देशक सम्पूर्ण ॥
।। उन्नीसवाँ शतक सम्पूर्ण ॥
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