________________
भगवती सूत्र-श. १९ उ. ३ स्थावर जीवों की पीड़ा का उदाहरण
२७९३
शरीर वाला हो यावत् दुर्बल और क्लान्त (रोग से पीड़ित) हो, उसके सिर पर दोनों मुष्टि से प्रहार करे, तो उस पुरुष द्वारा मुष्टि-प्रहार किया जाने पर वह वृद्ध पुरुष केसी पीड़ा का अनुभव करता है ?'
'हे भगवन् ! यह वृद्ध अत्यन्त अनिष्ट पीड़ा का अनुभव करता है।'
हे गौतम ! पृथ्वीकायिक जीव को आक्रान्त किया जाने पर वह उस वृद्ध पुरुष को वेदना की अपेक्षा अधिक अनिष्टतर, अकान्ततर (अप्रिय) यावत् अमनामतर (अत्यन्त अमनोज्ञ) पीड़ा का अनुभव करता है।
३२ प्रश्न-हे भगवन् ! जब अप्कायिक जीव का संघट्टा (संघर्ष-स्पर्श) होत है तब वह कैसी वेदना का अनुभव करता हैं ?
३२ उत्तर-हे गौतम ! पृथ्वीकाय के समान अप्काय का भी जानो। इसी प्रकार अग्निकाय, वायुकाय और वनस्पतिकाय के लिए भी जानना चाहिये।
'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार हैकह कर गौतम स्वामी यावत् विचरते हैं।
विवेचन-पृथ्वीकायिकादि जीवों को किस प्रकार की पीड़ा होती है, यह छद्मस्थ पुरुषों के इन्द्रिय-गोचर नहीं हो सकती और न उनके ज्ञान का विषय हो सकती है । इसलिये भगवान् ने जरा-जीर्ण वृद्ध पुरुष का दृष्टान्त दे कर बतलाया है । परन्तु पृथ्वीकायिकादि के जीव उस वृद्ध पुरुष की अपेक्षा भी अन्यन्त अनिष्ट महावेदना को वेदते हैं।
॥ उन्नीसवें शतक का तीसरा उद्देशक सम्पूर्ण ॥
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org