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भगवती सूत्र-श. १९ उ. ३ पृथ्वीकाय में समुद्घातादि
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समुग्धाए, कसायसमुग्घाए, मारणंतियममुग्घाए । __ १५ प्रश्न-ते णं भंते ! जीवा मारणंतियसमुग्घाएणं किं समो. हया मरंति, असमोहया मरंति ?
१५ उत्तर-गोयमा ! समोहया वि मरंति, असमोहया वि मरंति ॥११॥
१६ प्रश्न ते णं भंते ! जीवा अणंतरं उब्वट्टित्ता कहिं गच्छंति, कहिं उववजंति ?
१६ उत्तर-एवं उव्वट्टणा जहा वक्कंतीए ॥१२॥
भावार्थ-१३ प्रश्न-हे भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ?
१३ उत्तर-हे गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट बाईस हजार वर्ष की कही गई है।
१४ प्रश्न-हे भगवन् ! उन जीवों के कितनी समुद्घात कही गई हैं ?
१४ उत्तर-हे गौतम ! तीन समुद्घात कही गई है। यथा-वेदना समुद्घात, कषाय समुद्घात और मारणान्तिक समुद्घात ।।
.. १५ प्रश्न-हे भगवन् ! वे मारणान्तिक समुद्घात कर के मरते हैं, या मारणान्तिक समुद्घात किये बिना मरते हैं ?
१५ उत्तर-हे गौतम ! वे मारणान्तिक समुद्घात कर के भी मरते हैं और समुद्घात किये बिना भी मरते हैं।
. १६ प्रश्न-हे भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीव मर कर अन्तर रहित कहां जाते हैं, कहां उत्पन्न होते हैं ?
१६ उत्तर-हे गौतम ! प्रज्ञापना सूत्र के छठे व्युत्क्रान्ति पद के अनुसार उनको उद्वर्तना कहनी चाहिये ।
विवेचन-यहाँ बारह द्वार कहे गये हैं । द्वार गाषा इस प्रकार है
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