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भगवती सूत्र - श. १९ उ. ३ पृथ्वीकाय के जीव पापी है ?
भावार्थ-७ प्रश्न- हे भगवन् ! पृथ्वोकायिक जीव कैसा आहार करते हैं ? ७ उत्तर - हे गौतम! वे द्रव्य से अनन्तप्रदेशी द्रव्यों का आहार करते है । यह विषय प्रज्ञापना सूत्र के अट्ठाईसवें पद के प्रथम आहारोद्देशक के अनुसार यावत् 'सर्व आत्म-प्रदेशों से आहार ग्रहण करते हैं' - तक जानना चाहिये ।
८ प्रश्न - हे भगवन् ! वे जीव जिसका आहार करते हैं, उसका चय होता है ? और जिसका आहार नहीं करते, उसका चय नहीं होता और जिसका चय हुआ है उस आहार का असार भाग बाहर निकलता है और सार भाग शरीर इन्द्रियादिपने परिणमता है ?
८ उत्तर - हाँ, गौतम ! वे जिसका आहार करते हैं, उसका चय होता है और जिसका आहार नहीं करते, उसका चय नहीं होता यावत् सारभाग रूप आहार शरीर इन्द्रियादिपने परिणमता है ।
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९ प्रश्न - हे भगवन् ! उन जीवों को - 'हम आहार करते हैं' - ऐसी संज्ञा, प्रज्ञा, मन और वचन है ?
९ उत्तर - हे गौतम! यह अर्थ समर्थ नहीं है, अर्थात् उन जीवों को 'हम आहार करते हैं' - ऐसी संज्ञादि नहीं है, तो भी वे आहार करते हैं । १० प्रश्न - हे भगवन् ! उन जीवों को 'हम इष्ट या अनिष्ट स्पर्श का अनुभव करते हैं' - ऐसी संज्ञा, प्रज्ञा, मन और वचन हैं ?
१० उत्तर - हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है, तथापि वे वेदन तो करते हैं ।
पृथ्वीकाय के जीव पापी हैं ?
११ प्रश्न - ते णं भंते ! जीवा किं पाणाइवाए उक्पखाइजंति, मुसावाए, अदिण्णा० जाव मिच्छादंसणसल्ले उवक्वाइजति ?
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