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भगवती सूत्र - श. १९ उ २ गर्भ और लेश्या
क्रोध की वृद्धि होती है ।
कृष्ण - लेश्यादि के द्रव्य जब नील लेश्यादि के साथ मिलते हैं, तब वे नील लेश्यादि के स्वभाव तथा वर्णादि में परिणत हो जाते हैं । जैसे- दूध में छाछ डालने से वह दहा रूप में परिणत हो जाता है, एवं वस्त्र को मजीठ में भिगोने से वह मजीठ के वर्ण का हो जाता है । किन्तु लेश्या का यह परिणाम केवल मनुष्य और तिर्यंच की लेश्या के सम्बन्ध में ही है। देव और नारकी में द्रव्य - लेश्या अवस्थित होती है । इसलिये वहाँ अन्य लेश्या - द्रव्यों का सम्बन्ध होने पर भी अवस्थित लेश्या, सम्बध्यमान लेश्या के रूप में परिणत नहीं होती । वे अपने स्वरूप को रखती हुई सम्बध्यमान लेश्या द्रव्यों की छाया मात्र धारण करती है । जैसे - वैडूर्यमणि में लाल धागा पिरोने पर वह अपने नील वर्ण को रखते हुए धागे की लाल छाया को धारण करती है । इसी प्रकार कृष्णादि द्रव्य, अन्य लेश्या द्रव्यों के सम्बन्ध में आने पर वे अपने मूल स्वभाव और वर्णादि को नहीं छोड़ते हुए उनकी छाया (आकार मात्र) को धारण करते हैं ।
इसका विशेष विस्तार प्रज्ञापना सूत्र के सतरहवें पद के चौथे उद्देशक में है ।
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॥ उन्नीसवें शतक का पहला उद्देशक सम्पूर्ण ॥
शतक १६ उद्देशक २
गर्भ और लश्या
१ प्रश्न - क
णं भंते ! लेस्साओ पण्णत्ताओ ?
१ उत्तर - एवं जहा पण्णवणाए गब्भुद्देसो सो चेव णिरवसेसो
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