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भगवती सूत्र - श. १८ उ. १० कुलत्था भक्ष्य है ?
उत्तर - हे सोमिल ! तुम्हारे ब्राह्मण शास्त्रों में 'मास' दो प्रकार के कहे गये हैं । यथा - द्रव्यमास और कालमास । जो कालमास हैं, वे श्रावण से ले कर आषाढ़ मास पर्यंत बारह है । यथा-श्रावण, भाद्रपद, आश्विन, कार्तिक, मार्गशीर्ष, पौष, माघ, फाल्गुन, चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ और आषाढ़ । ये श्रमण-निर्ग्रथों के लिये अमक्ष्य हैं । द्रव्य-मास दो प्रकार का है । अर्थमाष और धान्यमाष । अर्थमा (सोना, चांदी तोलने का माषा) दो प्रकार का है । यथास्वर्णमाष और रौप्यमाष । ये श्रमण-निग्रंथों के लिये अभक्ष्य हैं । धान्यमाष दो प्रकार का है । यथा - शस्त्रपरिणत और अशस्त्रपरिणत, इत्यादि सभी धान्यसरिसव के समान कहना चाहिये, यावत् इस कारण 'मास' भक्ष्य भी है और अभक्ष्य भी है।
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विवेचन- 'मास' यह प्राकृत का श्लिष्ट शब्द है । इसकी संस्कृत छाया दो होती है । यथा- 'माष' और 'मास' | 'माप' का अर्थ है - 'उड़द ' नामक धान्य विशेष और 'मास' का अर्थ है - महीना ( श्रावण, भाद्रपद आदि) ।
कुलत्था भक्ष्य है ?
१७ प्रश्न – कुलत्था ते भंते ! किं भक्खेया अभक्खेया ? १७ उत्तर - सोमिला ! कुलत्था भाखेया वि अभवखेया वि । प्रश्न-से केद्रेणं जाव अभक्खेया वि ?
उत्तर- से णूणं सोमिला ! ते बंभण्णएसु णएसु दुविहा कुलत्था पण्णत्ता, तं जहा - इत्थिकुलत्थाय धण्णकुलत्था य । तत्थ णं जे ते इत्थिकुलत्था ते तिविहा पण्णत्ता, तं जहा कुलकण्णया इ वा कुलबहुया इ वा कुलमाउया इ वा, ते णं समणाणं णिग्गंथाणं
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