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________________ भगवती सूत्र-श. १८ उ. १० मरिसव भक्ष्य है या अभक्ष्य २७५९ १४ उत्तर-सोमिला ! जणं आगमेसु उजाणेसु देवकुलेसु सभासु पवासु इत्थी-पसु-पंडग-विवजियासु क्सहीसु फासु-एसणिज्जं पीढ-फलग-सेन्जा-संथारगं उवसंपजित्ता णं विहरामि, सेत्तं फासुयविहारं । भावार्थ-१४ प्रश्न-हे भगवन् ! आपके प्रासुक विहार कौन-सा है ? १४ उत्तर-हे सोमिल ! आराम (बगीचा), उद्यान, देवकुल, सभा, प्रपा (प्याऊ) आदि स्थान जो स्त्री, पशु, पण्डक (नपुंसक) रहित वसतियों में प्रासुक एषणीय पीठ, फलक, शय्या, संस्तारक आदि प्राप्त कर के में विचरता हूँ। यह मेरे प्रासुक विहार है। विवेचन-सोमिल ब्राह्मण ने यात्रा, यापनीय आदि के विषय में प्रश्न किया। वह जानता था कि ये शब्द गम्भीर अर्थ वाले हैं। भगवान का इनके अर्थों का ज्ञान नहीं होगा। इसलिए उसने भगवान की योग्यता जानने के लिये ये प्रश्न किये थे । भगवान ने उसके प्रश्नों का यथार्थ उत्तर दिया। संयम के विषय में प्रवृत्ति यात्रा' कहलाती है। मोक्ष साधना में संलग्न पुरुषों के इन्द्रियादि वश्यता रूप धर्म ‘यापनीय' कहलाता है। शरीर सम्बन्धी बाधा-पीड़ा न होना 'अव्याबाध' कहलाता है। निर्दोष एवं निर्जीव शयनासन स्थानादि का ग्रहण 'प्रासुक विहार' कहलाता है। सरिसव भक्ष्य है या अभक्ष्य १५ प्रश्न-सरिसवा ते भंते ! किं भक्खेया, अभक्खेया ? १५ उत्तर-सोमिला ! सरिसवा [मे] भक्खेया वि अभक्खेया वि । प्रश्न-से केण→णं भंते ! एवं वुच्चइ-'सरिसवा मे भक्खेया वि Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004091
Book TitleBhagvati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages566
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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