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भगवती सूत्र-श. १८ उ. ८ भ. महावीर द्वारा गौतम स्वामी की प्रशंसा २७४१
भ. महावीर द्वारा गौतम स्वामी की प्रशंसा
६-गोयमाई !' समणे भगवं महावीरे भगवं गोयमं एवं वयासी-'मुठु णं तुमं गोयमा ! ते अण्णउत्थिय एवं वयासी, साहु णं तुमं गोयमा ! ते अण्णउत्थिए एवं वयासी, अस्थि णं गोयमा ! ममं वहवे अंतेवासी समणा णिग्गंथा छउमत्था, जे णं णो पभू एयं वागरणं वागरेत्तए, जहा णं तुमं, तं सुठ्ठ णं तुम गोयमा ! ते अण्णउत्थिए एवं वयासी, साहु णं तुमं गोयमा ! ते अण्ण. उथिए एवं वयासी । तए णं भगवं गोयमे समणेणं भगवया महावीरेणं एवं वुत्ते समागे हत्तुढे समणं भगवं महावीरं वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता एवं वयासी
भावार्थ-६-'हे गौतम !' इस प्रकार सम्बोधित कर श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने गौतम स्वामी से कहा-'हे गौतम ! तुमने उन अन्यतीथियों को ठीक कहा, हे गौतम ! तुमने उन अन्यतीथियों को यथार्थ कहा । हे गौतम! मेरे बहुत-से शिष्य श्रमण-निर्ग्रन्थ छद्मस्थ हैं । जो तुम्हारे समान उत्तर देने में समर्थ नहीं है। इसलिये हे गौतम ! तुमने उन अन्यतीर्थियों को ठीक कहा । हे गौतम ! तुमने उन अन्यतीथियों को बहुत ठीक कहा ।' जब श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने ऐसा कहा, तब हृष्ट-तुष्ट हो कर गौतम स्वामी ने श्रमण भगवान महावीर स्वामी को वन्दना-नमस्कार कर इस प्रकार पूछा
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