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________________ - भगवतौ सूत्र-श. १८ उ ८ अन्यनीथियों से गौतम स्वामी का वाद २७३९ करते हो (दबाते हो) मारते हो यावत् उपद्रव करते हो । इसलिये प्राणियों को आक्रान्त यावत् उपद्रव करते हुए तुम त्रिविध-त्रिविध असंयत यान्त् एकान्त बाल हो। ४-तए णं भगवं गोयमे ते अण्णउत्थिए एवं वयासी-णो खलु अजो ! अम्हे रीयं रीयमाणा पाणे पेच्चेमो जाव उवद्दवेमो, अम्हे णं अजो ! रीयं रीयमाणा कायं च जोयं च रीयं च पडुच दिस्सा दिस्सा पदिस्सा पदिस्सा वयामो, तए णं अम्हे दिस्सा दिस्सा वयमाणा पदिस्मा पदिस्सा वयमाणा णो पाणे पेच्चेमो जाव णो उवद्दवेमो, तए णं अम्हे पाणे अपेच्चेमाणा जाव अणोडवेमाणा तिविहं तिविहेणं जाव एगंतपंडिया यावि भवामो, तुम्भे णं अजो ! अप्पणा चेव तिविहं तिविहेणं जाव एगंतबाला यावि भवह ।' ___ कठिन शब्दार्थ-दिस्सा दिस्सा--देख-देख कर, पदिस्सा पदिस्सा-विशेष रूप से देख-देख कर। भावार्थ-४ इस पर से गौतम स्वामी ने उन अन्यतीथियों से कहा-'हे आर्यों ! हम गमन करते हुए प्राणियों को आक्रान्त नहीं करते यावत् पीड़ा नहीं पहुंचाते । हम गमन करते हुए काययोग (संयम योग) और सूक्ष्मतापूर्वक (चपलता आदि रहित) देख-देख कर चलते हैं। इस प्रकार चलते हुए हम प्राणियों को आक्रान्त नहीं करते यावत् पीड़ा नहीं पहुंचाते। इस प्रकार प्राणियों को आक्रान्त नहीं करते हुए यावत् पीड़ित नहीं करते हुए हम त्रिविधत्रिविध यावत् एकान्त पण्डित हैं। हे आर्यों ! तुम स्वयं ही त्रिविध-त्रिविध असंयत, अविरत यावत् एकान्त बाल हो । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004091
Book TitleBhagvati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages566
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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