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मगवती सूत्र-श. १: उ. ४ पंचास्तिकायमय लोक
स्पृष्ट होता है । क्योंकि अद्धा-समय विशिष्ट परमाण द्रव्य, अद्धा-समय कहलाता है । वह एक अद्धा-समय, पुद्गलास्तिकाय के अनंत प्रदेशों मे आर अनन्त अद्धा-समयों से अर्थात् अद्धासमय विशिष्ट अनन्त परमाणुओं से स्पष्ट होता है क्योंकि वे उसके स्थान पर और आसपाम विद्यमान होते है।
धर्मास्तिकायादि की प्रदेशतः स्पर्शना ऊपर बताई गई है। आगे सम्पूर्ण धर्मास्तिकाय द्रव्य की म्पर्शना के विषय में प्रश्न किया गया है । उत्तर में कहा गया है कि धर्मास्तिकाय द्रव्य, धर्मास्तिकाय के एक प्रदेश में भी स्पष्ट नहीं है, क्योंकि सम्पूर्ण धर्मास्तिकाय द्रव्य के अतिरिक्त धर्मास्तिकाय के कोई पृथक् प्रदेश नहीं है । धर्मास्तिकाय द्रव्य, अधर्मास्तिकाय के असंख्य प्रदेशों से स्पष्ट है, क्योंकि धर्मास्तिकाय के प्रदेशों के मध्य में अधर्मास्तिकाय के असंख्य प्रदेश रहे हए हैं। इसी प्रकार धर्मास्तिकाय द्रव्य, आकागास्तिकाय के असंख्य प्रदेशों में स्पृष्ट हैं, क्योंकि धर्मास्तिकाय असंख्य प्रदेश स्वरूप सम्पूर्ण लोकाकाश में है और वह अनन्त जीव-प्रदेशों से व्याप्त है, क्योंकि धर्मास्तिकाय जीव-प्रदेशों को व्याप्त कर रहा हुआ है और वे अनन्त है । इसी प्रकार पुद्गलास्तिकाय के भी अनन्त प्रदेशों से स्पृष्ट है।
इस प्रकार धर्मास्तिकाय के छह, आकागास्तिकाय के छह, जीवास्तिकाय के छह और अद्धा-समय के छह सूत्र कहने चाहिये।
जहां केवल धर्मास्तिकायादि द्रव्यों का उनके प्रदेशों द्वारा स्पर्श ना का विचार किया जाय, वह 'स्वस्थान' कहलाता है और जब दूसरे द्रव्यों के प्रदेशों से स्पर्शना का विचार किया जाय, तो वह 'परस्थान' कहलाता है । 'स्वस्थान' में तो वह द्रव्य अपने एक भी प्रदेश से स्पष्ट नहीं होता और 'परस्थान' में धर्मास्तिकायादि तीन द्रव्यों के विषय में असंख्य प्रदेशों में स्पृष्ट होता है । क्योंकि-धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय और तत्सम्बद्ध आकाशास्तिकाय के असंख्य प्रदेश हैं । जीवादि तीन द्रव्यों के विषय में अनन्त प्रदेशों द्वारा स्पृष्ट होता है । क्योंकि इन तीनों के अनन्त प्रदेश हैं। आकाशास्तिकाय में इतनी विशेषता है कि वह धर्मास्तिकायादि के प्रदेशों से कदाचित स्पष्ट होता है और कदाचित स्पष्ट नहीं होता । जो स्पृष्ट होता है, वह धर्मास्तिकाय और अधर्मास्तिकाय के असंख्य प्रदेशों से और जीवास्तिकाय के अनन्त प्रदेशों से स्पष्ट होता है। यावत् एक अद्धा-समय, एक भी अद्धा-समय से स्पृष्ट नहीं होता है, क्योंकि निरुपचरित अद्धा-समय एक ही होता है । इसलिये समयान्तर के साथ उनकी म्पर्गना नहीं होती। जो समय बीत चुका है, वह तो विनष्ट हो गया है और अनागत समय अभी उत्पन्न ही नहीं हुआ, अतएव अतीत और अनागत के समय असत्स्वरूप होने से उनके साथ वर्तमान समय की स्पर्शना नहीं हो सकती।
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