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भगवती सूत्र-टा .३ उ. ४ पंचास्तिकायमय लोक.
पुद्गलास्तिकाय-द्रव्य की अपेक्षा अनन्त द्रव्य रूप है । क्षेत्र की अपेक्षा लोक परिमाण है और परमाणु से लेकर अनन्त प्रदेगी तक है । काल की अपेक्षा आदि-अन्त रहित है । ध्रुव, शाश्वत और नित्य है । भाव की अपेक्षा वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श सहित है । यह रूपी और जड़ है । गुण की अपेक्षा 'ग्रहण' गुण वाला है । औदारिक शरीर आदि रूप से ग्रहण किया जाना या इन्द्रियों से ग्रहण होना, (इन्द्रियों का विषय होना) परस्पर एक दूसरे से मिलना, पुद्गलास्तिकाय का गुण है।
१९ प्रश्न-एगे भंते ! धम्मत्थिकायपासे केवइएहिं धम्मस्थिकायपएसेहिं पुढे ?
१९ उत्तर-गोयमा ! जहण्णपए तिहिं, उक्कोसपए छहिं । प्रश्न-केवड़एहिं अहम्मत्थिकायपएमेहिं पुढे ? । उत्तर-गोयमा ! जहण्णपए चाहिं, उक्कोसपए सत्तहिं । प्रश्न-केवइएहिं आगामस्थिकायपएसेहिं पुढे ? उत्तर-गोयमा ! सत्तहिं । प्रश्न-केवइएहिं जीवत्थिकायपएसेहिं पुढे ? उत्तर-गोयमा ! अणंतेहिं । प्रश्न-केवइएहिं पोग्गलत्थिकायपएसेहिं पुढे ? उत्तर-गोयमा ! अणंतेहिं ।। प्रश्न-केवइएहिं अद्धासमएहिं पुढे ? उत्तर-सिय पुढे सिय णो पुढे, जइ पुढे णियमं अणंतेहिं । २० प्रश्न-एगे भंते ! अहम्मत्थिकायपएसे केवइएहिं धम्मस्थि
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