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________________ २१८८ भगवती मूत्र-ग. १३ उ. ४ पंचास्तिकायमय लोक दिशाओं का उत्पत्ति स्थान आठ रुचक-प्रदेश हैं। चारों दिशाएं मूल में द्विप्रदेशी हैं ओर आगे-आगे दो-दो प्रदेशों की वृद्धि होती गई है । विदिशाएं मूल में एक प्रदेशी निकली है और अन्त तक एक प्रदेश ही है । इनमें वृद्धि नहीं होती। ऊर्ध्व दिशा और अधो दिशा में चतुष्प्रदेशी निकली है और अन्त तक चतुष्प्रदेशी ही है । इनमें वृद्धि नहीं होती। पंचास्तिकायमय लोक १३ प्रश्न-किमियं भंते ! लोएत्ति पवुच्चइ ? १३ उत्तर-गोयमा ! पंचत्थिकाया, एस णं एवइए लोए त्ति पवुच्चइ, तं जहा-१ धम्मत्थिकाए २ अहम्मस्थिकाए, जाव ५ पोग्गलथिकाए। ___१४ प्रश्न-धम्मत्थिकारणं भंते ! जीवाणं किं पवत्तइ ? १४ उत्तर-गोयमा ! धम्मत्थिकारणं जीवाणं आगमणगमणभासुम्मेसमणजोगा, वहजोगा, कायजोगा, जे यावण्णे तहप्पगारा चला भावा सब्वे ते धम्मत्थिकाए पवत्तंति, गइलक्खणे णं धम्मत्थिकाए । १५ प्रश्न-अहम्मत्थिकारणं भंते ! जीवाणं किं पवत्तइ ? १५ उत्तर-गोयमा ! अहम्मत्थिकारणं जीवाणं ठाण-णिसी. यण-तुयट्टण, मणस्स य एगत्तीभावकरणया, जे यावण्णे तहप्पगारा थिरा भावा सब्वे ते अहम्मत्थिकाए पवत्तंति, ठाणलक्खणे णं अहम्मत्थिकाए। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004090
Book TitleBhagvati Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages530
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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