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२६३२ भगवती सूत्र-ग १७ 3. ६ नारक पृथिवीकायिक जीवों का मरण-समद्घात
विमाणे, अणुत्तरविमाणे; ईसिपमाराए य एवं चेव ।
३ प्रश्न-पुढविकाइए णं भंते ! सकरप्पभाए पुटवीए समोहए, समोहणित्ता जे भविए सोहम्मे कप्पे पुढवि० ?
३ उत्तर-एवं जहा रयणप्पभाए पुढविकाइओ उववाइओ एवं सकरप्पभाए वि पुढविक्काइओ उबवाएयब्बो जाव ईसिप-भागए. एवं जहा रयणप्पभाए वत्तव्वया भणिया, एवं जाव अहे.सत्तमाप समोहए ईसिप-भाराए उववाएयव्वो, सेसं तं चेव ।
** सेवं भंते ! मेवं भंते ! ति ४
॥ सत्तरसमे मए छटो उद्देसो ममत्तो ।। कठिन शब्दार्थ-समोहए-ममबहन-जिमने ममद्घात की है, संपाउणेज्जा-पुद्गलों को ग्रहण करे ।
भावार्थ-१ प्रश्न-हे भगवन् ! जो पृथ्वीकायिक जीव, इस रत्नप्रभा पृथ्वी में मरण-समुद्घात करके सौधर्म-कल्प में पृथ्वीकायिकपने उत्पन्न होने के योग्य हैं, वे पहले उत्पन्न होते है और पीछे आहार (पुद्गल) ग्रहण करते हैं या पहले आहार ग्रहण करते हैं और पीछे उत्पन्न होते हैं ?
१ उत्तर-हे गौतम ! वे पहले उत्पन्न होते हैं और पीछे पुद्गल ग्रहण करते हैं, अथवा पहले पुद्गल ग्रहण करते हैं और पीछे उत्पन्न होते हैं।
प्रश्न-हे भगवन् ! ऐसा क्यों कहा गया कि यावत् पीछे उत्पन्न होते हैं ?
उत्तर-हे गौतम ! पृथ्वीकायिक जीवों में तीन समुद्घात कही गई है। यथा-वेदना-समुद्घात, कषाय-समुद्घात और मारणान्तिक-समुद्घात । जब पृथ्वीकायिक जीव, मारणान्तिक- समुद्घात करता है, तब वह 'देश' से भी
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