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भगवती सूत्र-श. १७ उ. ५ ईशानेन्द्र की सुधर्मा सभा
सेमं तं चेव जाव ईसाणे देविंदे देवराया २ ।
* सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति के
॥ सत्तरसमे सए पंचमो उद्देसो समत्तो ॥ कठिन शब्दार्थ-ईसाणव.सए-ईशानावतंसक ।
भावार्थ-१ प्रश्न-हे भगवन् ! देवेन्द्र देवराज ईशान को सुधर्मा सभा कहां कही गई है ?
१ उत्तर-हे गौतम ! इस जम्बूद्वीप के मन्दर पर्वत के उत्तर में इस रत्नप्रभा पृथ्वी के अत्यन्त समरमणीय भूमि-भाग से ऊपर चन्द्र और सूर्य को उल्लंघ कर आगे जाने पर यावत् प्रज्ञापना सूत्र के 'स्थान' नामक दूसरे पद के अनुसार यावत् मध्यभाग में ईशानावतंसक विमान है । वह ईशानावतंसक महा विमान साढ़े बारह लाख योजन लम्बा और चौड़ा है, इत्यादि यावत् दसवें शतक के छठे उद्देशक में शक्रेन्द्र के विमान को वक्तव्यता के अनुसार ईशान के विषय में यावत् आत्मरक्षक देवों की सम्पूर्ण वक्तव्यता तक जाननी चाहिये। ईशानेन्द्र की स्थिति दो सागरोपम से कुछ अधिक है, शेष सब पूर्ववत् यावत् यह देवेन्द्र देवराज ईशान है, तक जाननी चाहिए।
. हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है। यों कह कर गौतम स्वामी यावत् विचरते हैं।
॥ सतरहवें शतक का पाँचवाँ उद्देशक सम्पूर्ण ॥
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