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भगवती सूत्र--ग. १७ उ. ४ आत्मकृत सुखदुःख और वेदना
वेयणं वेएंति, तदुभयकडं वेयणं वेएंति ? ___११ उत्तर-गोयमा ! जीवा अत्तकडं वेयणं वेएंति, णो परकडं, णो तदुभयकडं; एवं जाव वेमाणियाणं ।
* मेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति
॥ सत्तरसमे सए चउत्थो उद्देसो समत्तो ।। कठिन शब्दार्थ-अत्तकडे-आत्मकृत।
भावार्थ-८ प्रश्न-हे भगवन् ! जीवों के जो दुःख है वह आत्मकृत है, परकृत है या उभयकृत है ?
८ उत्तर-हे गौतम ! जीवों के जो दुःख है, वह आत्मकृत है, परकृत नहीं और उभयकृत भी नहीं है। इसी प्रकार वैमानिकों तक जानना चाहिये ।
९ प्रश्न-हे भगवन् ! जीव, आत्मकृत दुःख वेदते हैं, परकृत दुःख वेदते हैं या उभयकृत दुःख वेदते हैं ?
९ उत्तर-हे गौतम ! जीव, आत्मकृत दुःख वेदते हैं, परकृत दुःख नहीं वेदते और न उभयकृत दुःख वेदते हैं। इसी प्रकार वैमानिकों तक जानना चाहिये।
१० प्रश्न-हे भगवन् ! जीवों के जो वेदना है, वह आत्मकृत है, परकृत है या उभयकृत है ?
१० उत्तर-हे गौतम ! जीवों के वेदना आत्मकृत है, परकृत नहीं और उभयकृत भी नहीं है । इसी प्रकार वैमानिकों तक जानना चाहिये।
११ प्रश्न-हे भगवन् ! जीव, आत्मकृत वेदना वेदते हैं, परकृत वेदना वेदते हैं या उभयकृत वेदना वेदते हैं ?
११ उत्तर-हे गौतम ! जीव, आत्मकृत वेदना वेदते हैं, परकृत और उभयकृत वेदना नहीं वेदते । इसी प्रकार वैमानिकों तक जानना चाहिये।
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