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________________ भगवती सूत्र-श. १७ उ. ३ संवेगादि धर्म का अंतिम फल २६२१ १२ उत्तर-हे गौतम ! जीव ने औदारिक शरीर में वर्तते हुए, औदा. रिक शरीर के योग्य द्रव्यों को, औदारिक शरीरपने परिणमाते हुए भूतकाल में औदारिक शरीर की चलना की थी, अभी करते हैं और आगे करेंगे, इसीलिये हे गौतम ! 'औदारिक शरीर चलना' कहलाती है। १३ प्रश्न-हे भगवन् ! वैक्रिय शरीर चलना क्यों कहलाती है ? १३ उत्तर-हे गौतम ! पूर्वोक्त वक्तव्य । यहाँ औदारिक शरीर के स्थान पर 'वैक्रिय शरीर में वर्तते हुए-इत्यादि जानना चाहिये । इसी प्रकार यावत् कार्मण शरीर चलना तक जानना चाहिये । १४ प्रश्न-हे भगवन ! श्रोत्रेन्द्रिय चलना क्यों कहलाती है ? १४ उत्तर-हे गौतम ! श्रोत्रेन्द्रिय को धारण करते हुए जीवों ने श्रोत्रेन्द्रिय योग्य द्रव्यों को श्रोत्रेन्द्रियपने परिणमाते हुए श्रोत्रेन्द्रिय को चलना की थी, करते हैं और करेंगे, इसी से श्रोत्रेन्द्रिय चलना 'श्रोत्रेन्द्रिय चलना' कहलाती है। इसी प्रकार यावत् स्पर्शनेन्द्रिय चलना तक जानना चाहिये। १५ प्रश्न-हे भगवन् ! मनोयोग चलना क्यों कहलाती है ? १५ उत्तर-हे गौतम ! मनोयोग को धारण करते हुए जीवों ने मनोयोग्य द्रव्यों को मनोयोगपने परिणमाते हुए मनोयोग को चलना की थी, करते हैं और करेंगे । इसलिये मनोयोग चलना कहलाती है। इसी प्रकार वचन-योग चलना तथा काय-योग चलना भी जाननी चाहिये । संवेगादि धर्म का अंतिम फल . १६ प्रश्न- अह भंते ! संवेगे, णिव्वेए, गुरु-साहम्मियसुस्सूसणया, आलोयणया, जिंदणया, गरहणया, खमावणया,सुयसहायता, विउसमणया, भावे अप्पडिबद्धया, विणिवट्टणया, विविचसयणासण Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004090
Book TitleBhagvati Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages530
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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