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कथन है। दूसरे में जरा आदि अर्थ विषयक है। तीसरे में कर्म विषयक कथन है। चौथे उद्देशक का नाम 'जावतिय' है । पाँचवें उद्देशक में गंगदत्त देव विषयक, नौवें में बलीन्द्र विषयक, दसवें में अवधिज्ञान विषयक, ग्यारहवें में द्वीपकुमार विषयक, बारहवें में उदधिकुमार विषयक, तेरहवें में दिशाकुमार विषयक और चौदहवें में स्तनितकुमार विषयक कथन हैं।
शतक १७ सतरहवें शतक में १७ उद्देशक हैं। कोणिक राजा के हाथी के विषय में पहला कुंजर उद्देशक २. संयतादि के विषय में दूसरा ३. शैलेशी अवस्था को प्राप्त नगर विषयक तीसरा ४. क्रिया विषयक चौथा ५ . ईशानेन्द्र की सुधर्मा सभा के विषय में पांचवां ६-७. पृथ्वीकाय के विषय में छठा और सातवां ८-६ अप्काय के विषय में आठवां और नौवां १०-११. वायुकाय के विषय में दसवाँ और ग्यारहवाँ १२. एकेन्द्रिय जीवों के विषय में बारहवां १३-१७. नागकुमार, सुवर्णकुमार, विद्युत्कुमार और अग्निकुमार देवों के विषय में क्रमशः तेरह से ले कर सतरह उद्देशक हैं।
उक्त पांच शतकों की विशेष जानकारी के लिए पाठक बंधुओं को इस पुस्तक का पूर्ण रूपेण पारायण करना चाहिये ।
संघ की आगम बत्तीसी प्रकाशन में आदरणीय श्री जशवंतभाई शाह, मुम्बई निवासी का मुख्य सहयोग रहा है। आप एवं आपकी धर्म सहायिका श्रीमती मंगलाबेन शाह की सम्यग्ज्ञान के प्रचार-प्रसार में गहरी रुचि है। आपकी भावना है कि संघ द्वारा प्रकाशित सभी आगम अर्द्ध मूल्य में पाठकों को उपलब्ध हो तदनुसार आप इस योजना के अंतर्गत सहयोग प्रदान करते रहे हैं। अतः संघ आपका आभारी है।
आदरणीय शाह साहब तत्त्वज्ञ एवं आगमों के अच्छे ज्ञाता हैं। आप का अधिकांश समय धर्म साधना, आराधना में बीतता है । प्रसन्नता एवं गर्व तो इस बात का है कि आप स्वयं तो आगमों का पठन-पाठन करते ही हैं, साथ ही आपके सम्पर्क में आने वाले चतुर्विध संघ के सदस्यों को भी आगम की वाचनादि देकर जिनशासन की खूब प्रभावना करते हैं। आज के इस हीयमान युग में आप जैसे तत्त्वज्ञ श्रावक रत्न का मिलना जिनशासन के लिए गौरव की
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