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________________ भगवती सूत्र-. १७ उ. ३ शैलेगी अनगार की निष्कम्पता २६१५ जीव मुक्त होता है और मुक्त जीव को फिर से कर्मवन्ध नहीं होता। कर्मबन्ध के अभाव में शरीर की उत्पत्ति न होने से वर्णादि का अभाव होता है । अत: अरूपी होकर जीव फिर रूपी नहीं होता। ॥ सतरहवें शतक का दूमरा उद्देशक सम्पूर्ण ॥ शतक १७ उद्देशक ३ शैलेशी अनगार की निष्कापता १ प्रश्न-सेलेसिं पडिवण्णए णं भंते ! अणगारे सया समियं एयइ, वेयइ जाव तं तं भावं परिणमइ ? १ उत्तर-णो इणटे समटे, गण्णत्थ एगेणं परप्पयोगेणं । २ प्रश्न-कइविहा णं भंते ! एयणा पण्णत्ता ? २ उत्तर-गोयमा ! पंचविहा पण्णत्ता; तं जहा-१ दव्वेयणा २ खित्तेयणा ३ कालेयणा ४ भवेयणा ५ भावेयणा । ३ प्रश्न-दव्वेयणा णं भंते ! कइविहा पण्णत्ता ? ३ उत्तर-गोयमा ! चउब्विहा पण्णत्ता। तं जहा-१ णेरड्य. दव्वेयणा, २ तिरिक्ख० ३ मणुस्स० ४ देवदव्वेयणा । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004090
Book TitleBhagvati Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages530
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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