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भगवती सूत्र-श. १६ 3. ६ मोक्ष फल-दायक स्वप्न
दोच्चे भवग्गहणे सिज्झइ जाव अंत करे ।
कठिन शब्दार्थ-सुविणंते-स्वप्न के अंत में, हयपति-अश्व पंक्ति, दुरूहमाणे ऊपर चढ़ता हुआ, तक्खणामेव-तत्काल, दामिणि-रस्मी. पाईणपडिणायतं-पूर्व-पश्चिम लम्बा, संवेल्लेमाणे-समेटता हुआ, रज्जु-रस्सी, उग्गोवेमाणे-सुलझाता हुआ।
भावार्थ-१८-कोई स्त्री या पुरुष, स्वप्न के अन्त में एक महान् अश्व पंक्ति, गज पंक्ति यावत् वृषभ पंक्ति देखे और उस पर चढ़े तथा अपने आपको उस पर चढ़ा हुआ माने-ऐसा स्वप्न देख कर तुरन्त जाग्रत होवे, तो वह उसी भव में सिद्ध होता है यावत् सभी दुःखों का अन्त करता है ।
१९-कोई स्त्री या पुरुष, स्वप्न के अन्त में एक बड़ो रस्सी को समुद्र के पूर्व और पश्चिम तक विस्तृत देखे और उसे अपने हाथों से तमेटे, फिर अनुभव करे कि 'मैने रस्से को समेट लिया है। इस प्रकार स्वप्न देख कर शीघ्र जाग्रत हो, तो वह उसी भव में सिद्ध होता है यावत् सभी दुःखों का अन्त करता है ।
२०-कोई स्त्री या पुरुष, स्वप्न के अन्त में दोनों ओर लोकान्त को स्पर्श की हुई तथा पूर्व और पश्चिम लम्बी एक बड़ी रस्सी देखे और उसे काट डाले, एवं 'मैने उसे काट दिया है'-ऐसा अपने आपको माने और ऐसा स्वप्न देख कर शीघ्र जाग्रत हो, तो वह उसी भव में सिद्ध होता है यावत् समस्त दुखों का अन्त करता है।
२१-कोई स्त्री या पुरुष, स्वप्न के अन्त में एक महान् काले सूत अथवा यावत् श्वेत सूत के उलझे हुए पिण्ड को सुलझावे और-'मैंने इसको सुलझा दिया है'-ऐसा अपने आपको माने । ऐसा स्वप्न देख कर शीघ्र जाग्रत हो, तो वह उसी भव में सिद्ध होता है यावत् सभी दुःखों का अन्त करता है।
२२-कोई स्त्री या पुरुष, स्वप्न के अन्त में एक महान् लोह राशि, ताम्बे का ढेर, कथीर का ढेर और शीशे का ढेर देखे और उस पर चढ़े तथा अपने आपको उस पर चढ़ा हुआ माने । ऐसा स्वप्न देख कर शीघ्र जाग्रत हो, तो वह दूसरे भव में सिद्ध होता है यावत् सभी दुःखों का अन्त करता है।
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