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भगवती सूत्र-श. १६ उ. ५ गंगदत्त देव के प्रश्न . .
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उवदं सेइ, उवदंमेत्ता जाव तामेव दिसं पडिगए ।
कठिन शब्दार्थ-जाव - जब तक, हव्वमागए-अभी आया, शीघ्र आया । ___ भावार्थ-जिस समय श्रमण भगवान महावीर स्वामी, गौतम स्वामी को उपर्युक्त बात कह रहे थे, उसी समय शीघ्र ही वह सम्यगदष्टि देव वहां आया और श्रमण भगवान महावीर स्वामी को तीन बार प्रदक्षिणा को और वन्दना-नमस्कार कर के पूछा; --
३ प्रश्न-हे भगवन् ! महाशुक्र कल्प में महासामान्य नामक विमान में उत्पन्न हुए मायोमिथ्यादृष्टि देव ने मुझे इस प्रकार कहा-"परिणमते हुए पुद्गल' परिणत' नहीं कहे जाकर अपरिणत कहे जाते है, क्योंकि वे पुद्गल अभी परि. णम रहे हैं। इसलिये वे 'परिणत' नहीं कहे जाते हैं।" उसके उत्तर में मैंने उस मायी मिथ्यादृष्टि देव से कहा-“ परिणमते हुए पुद्गल परिणत' कहलाते हैं, अपरिणत नहीं, क्योंकि वे पुद्गल परिणत हो रहे हैं, वे अपरिणत नहीं, परिणत कहलाते हैं ।" हे भगवन् ! मेरा यह कथन कैसा है ?
__३ उत्तर-'हे गंगदत्त ! में भी इसी प्रकार कहता हूं यावत् प्ररूपणा करता हूं कि परिणमते हुए पुद्गल यावत् 'अपरिणत' नहीं, परिणत हैं । यह अर्थ सत्य है । इसके पश्चात् श्रमण भगवान महावीर स्वामी का उत्तर सुन कर एवं अवधारण कर वह गंगदत्त देव हृष्ट-तुष्ट हुआ। उसने श्रमण भगवान् महावीर स्वामी को वन्दन-नमस्कार किया और न अति दूर न अति निकट बैठ कर भगवान् को पर्युपासना करने लगा।
४ प्रश्न-श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने गंगदत्त देव और महती परिषद् को धर्म-कथा कही यावत्-जिसे सुन कर जीव आराधक बनते हैं । गंगदत्त देव, भगवान् से धर्म सुन कर और अवधारण कर के हृष्ट-तुष्ट हुआ और खड़े होकर भगवान् को वन्दना-नमस्कार कर इस प्रकार पूछा-“हे भगवन् ! मैं गंगदत्त देव भवसिद्धिक हूँ या अभवसिद्धिक ?"
४ उत्तर-हे गंगदत्त ! राजप्रश्नीय सूत्र के सूर्याभ देव वत् यावत् वह
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